सामान्यत: ऐसा तब ही होता है, जब अपनों को नौकरी में ‘एडजस्टÓ करना होता है। इस विश्वविद्यालय से राज्य के मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री, अनेक सांसद और विधायक निकले हैं। कई सारे आईएएस और आईपीएस अधिकारी निकले हैं, जो आज अहम पदों पर बैठे हैं। उन्हीं का विश्वविद्यालय बरसों से घोटालों का शास्त्र पढ़ा रहा है। कुछ महीनों के अंतराल पर एक नया घोटाला सामने आ जाता है। जैसे कि विश्वविद्यालय में विज्ञान, भूगोल और अन्य दूसरे विषयों की जगह घोटालों और भ्रष्टाचार की तकनीक पर अध्ययन हो रहा हो। जो कर्मचारी गड़बड़ी के रास्ते शैक्षिक या अशैक्षिक कार्य करने के लिए नियुक्त किए जा रहे हैं, वे क्या काम कर रहे होंगे यह भी समझा जा सकता है। पुराने छात्र बताते हैं कि पहले कक्षाएं भरी रहती थीं। छात्र तैयारी कर आते थे। कुछ प्रोफेसर्स की साख थी। उनके लैक्चर बरसों तक छात्रों को भी याद रहा करते थे। अब वैसा माहौल नहीं रहा। वैसी शिक्षा भी नहीं रही। भविष्य में कुछ बनने की चाह रखने वाले छात्रों की प्राथमिकता में अब जेएनवीयू नहीं है। लगातार हो रही गड़बडि़यों ने शिक्षा के स्तर को गिरा दिया है और अब तो साख का संकट उत्पन्न हो रहा है।
कारण यही है कि विश्वविद्यालय के कर्ताधर्ता शिक्षा के अलावा बाकी सभी कामों में व्यस्त हैं। अचरज की बात तो यह है कि राज्य के प्रमुख शिक्षा संस्थानों में से एक इस विश्वविद्यालय के कर्ताधर्ताओं के इतने कारनामे सामने आने के बाद भी सरकार एक शब्द तक नहीं बोल रही है। आखिर क्यों…? क्या इन गड़बडि़यों में शामिल लोगों को भी प्रश्रय मिल रहा है? उन्हें घोटाले करने की छूट क्यों दे रखी है? सरकार से तो कोई उम्मीद नहीं, अलबत्ता जोधपुर के जनप्रतिनिधि भी चुप हैं, उनके विश्वविद्यालय की साख का सवाल है। हालात तो सुधारने ही होंगे। कुछ लोगों को बरसों पुराने विश्वविद्यालय की साख से खेलने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। शिक्षा के मंदिर का सम्मान लौटना ही चाहिए। वरना युवाओं को जीवन की राह बनाने वाली इस पावन चौखट पर जंगल का कानून मनमर्जी करता रहेगा।