जोधपुर में प्री कैम्ब्रियन पीरियड में समुद्र होने के कारण यहां छीतर का पत्थर मिलता है जो बूंदी-कोटा से विंध्य पर्वतमाला तक जुड़ा हुआ है। इससे वैज्ञानिकों को भारत का भू विज्ञान समझने में मदद मिलती है। समुद्र की गहराई करीब 100 मीटर थी, जिसमें धीरे-धीरे अवसादी करण के साथ ही कशेरुकी जीवों का प्रवेश हुआ।
बेहतर जिओ आर्कियोलॉजी
‘जोधपुर, बाड़मेर में जालौर में स्थित मालाणी संरचना और ज्वालामुखी प्रमाण से भू विज्ञान के कई तथ्य समझने में मदद मिल रही है।
डॉ एसके वधावन, पूर्व महानिदेशक, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया विश्व मे बहुत कम उदाहरण हैं
‘जोधपुर में जिस तरह कि भू संरचनाएं मिल रही है ऐसी संरचना विश्व में बहुत कम है। खुद मेहरानगढ़ किले के पूर्व की तरफ वेल्डेड टूफ और पश्चिम की तरफ लावा पत्थर है, जबकि हाथी कैनाल के पास बड़े ज्वालामुखी ब्रकेशिया मिले हैं।
डॉ सुरेश माथुर, विभागाध्यक्ष, भू-विज्ञान, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर
‘मेहरानगढ़ किले की लिफ्ट के पास दोनों चट्टानों का इंटरफेस है। पर्यटकों के लिए हमने वहां साइन बोर्ड लगाया है। अब हम मेहरानगढ़ को जिओ साइट के रूप में विकसित कर रहे हैं।
करणी सिंह, निदेशक, मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट