शहर के उदयमंदिर क्षेत्र के निवासी ऐजाज एहमद पुत्र नसीर अहमद की ओर से अधिवक्ता नीलकमल बोहरा के माध्यम से दायर इस याचिका को इसी सप्ताह के अंत तक सुनवाई के लिए सूचिबद्ध किए जाने की आशा है। संविधान की धारा 226 के तहत दायर याचिका में कहा गया है कि राजस्थान सरकार की ओर से एक आध्यादेश जारी किया गया है। इसे ‘राजस्थान क्रिमिनल लॉ एमेंडमेंट ऑर्डिनेंस-2017Ó का नाम दिया गया है। इसमें धारा 156 (3) सीआरपीसी व धारा 190 (बी) सीआरपीसी में संशोधन के साथ ही एक नई धारा 228 (बी) को शामिल किया गया है। इससे मूल सीआरपीसी में अभूतपूर्व बदलाव करने की मंशा नजर आती है। इससे आम आदमी को मजिस्ट्रेट के समक्ष किसी भी आरोपी जज, मजिस्ट्रेट व लोक सेवक के खिलाफ जिसने सरकारी ड्यूटी करते हुए किसी भी तरह का भ्रष्ट आचरण किया हो तो उसके खिलाफ शिकायत करने का अधिकार नहीं रहेगा। यहां तक कि प्रेस की आजादी को भी समाप्त कर भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ समाचार प्रकाशित करने व नाम उजागर वालों के खिलाफ ही मुकदमा दायर करने का प्रावधान किया गया है। यह एकदम अवैधानिक है, जिसे कोर्ट संविधान विरुद्ध घोषित करे अथवा जैसा उचित समझे वैसे निर्देश अथवा आदेश जारी करें।
आखिर क्या है इस बिल में… इस बिल के मुताबिक, प्रदेश के सांसद, विधायक, जज और अफसरों के खिलाफ जांच करना काफी मुश्किल हो जाएगा, जबकि इन लोगों पर पर शिकायत दर्ज कराना आसान नहीं रहेगा। इसके अलावा दागी लोकसेवकों को दुष्कर्म पीडि़ता वाली धारा में संरक्षण, कोर्ट के प्रसंज्ञान लेने से पहले नाम-पता उजागर तो दो साल सजा, अभियोजन स्वीकृति से पहले मीडिय़ा में किसी तरह की कोई रिपोर्ट आई तो इसमें सजा का प्रवधान के साथ कड़ा जुर्माना भी है। जबकि इन लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए सरकार 180 दिन में अपना निर्णय देगी। इसके बाद भी अगर संबंधित अधिकारी या लोकसेवक के खिलाफ कोई निर्णय नहीं आता है, तो अदालत के जरिए इनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई जा सकेगी।