वर्ष 2011 में जारी जनसंख्या के आंकड़ों में जोधपुर में लिंगानुपात 915 था। जिला टॉप-5 तो दूर रहा, टॉप-10 में भी नहीं था। आंकड़ा धीरे धीरे बढ़ा। अब यहां लिंगानुपात 960 तक पहुंच गया है। यानी 45 अंकों की सीधी बढ़ोतरी।
बेटा-बेटी में भेदभाव नहीं करने के नारे तो खूब चले लेकिन इनकी सार्थकता साबित नहीं हुई। संबंधित विभाग भी कागजी आंकड़ों से आगे नहीं बढ़े लेकिन जब सामूहिक प्रयासों से कार्य शुरू किया तो सुखद नतीजा दिखने लगा। बेटी जन्म पर खुशियां मनाई जाने लगी, ग्रामीण स्तर तक बेटी जन्म पर थाली बजाने की परम्परा चली, प्रसव में प्रथम बेटी होने पर माता को सम्मानित करने की होड़ लगी। ये सभी कार्यक्रम प्रशासनिक स्तर के साथ-साथ स्वयंसेवी संगठनों व संस्थाओं की ओर से भी किए जाने लगे।
बेटी जन्म पर खुशियां मनाने की मुहिम जोधपुर में राजस्थान पत्रिका ने ‘वंशालिका हैं बेटियां’ व ‘बिटिया बचाओ’ अभियान के तहत चलाई। यहां उम्मेद अस्पताल में बेटी जन्म देने वाली माताओं को चांदी के सिक्के देकर सम्मानित किया गया। बाद में कई गांवों में बेटी जन्म पर थाली बजाने की परम्परा भी शुरू करवाई गई। पूरे शहर में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के तहत रैली भी निकाली गई, जिसमें 200 से अधिक संस्थाएं जुटी।
इसके लिए जोधपुर के प्रत्येक नागरिक को बधाई। यह कोई आसान काम नहीं था। वर्षों से चली आ रही मानसिकता को जब तक नहीं बदल देते, तब तक इस तरह की मुहिम सार्थक नहीं हो सकती। यहां सबसे पहले कार्य जनचेतना का किया। गांव-ढाणी की स्कूलों तक भी गए। आंगनबाड़ी की तरफ ध्यान दिया। बालिकाओं के लिए चलाई जा रही योजनाओं की सतत मॉनिटरिंग की। अभिभावकों से मिले और उनकी मानसिक बदली। बेटियों के जन्म पर जब चहुंओर खुशियां मनाई जाने लगी तो जोधपुर के सितारे चमके। आज जोधपुर ने लिंगानुपात में पूरे प्रदेश का मान बढ़ाया है।
– दलवीर दढ्ढा, उपनिदेशक, महिला एवं बाल विकास विभाग