यह जानकारी दिए जाने के बाद मुख्य न्यायाधीश एस रविंद्र भट्ट तथा न्यायाधीश डा.पुष्पेंद्रसिंह भाटी की खंडपीठ ने मेहरानगढ़ दुखांतिका संघर्ष समिति के सचिव मानाराम की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई मुल्तवी कर दी। गौरतलब है कि 30 सितंबर, 2008 को मेहरानगढ़ किले में स्थित चामुंडा माता मंदिर में नवरात्र के पहले दिन भगदड़ मे 216 लोगों की मौत हो गई थी।
तत्कालीन भाजपा सरकार ने अक्टूबर 2008 में जस्टिस जसराज चौपड़ा की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया था जिसने त्रासदी की जांच की और जिम्मेदारी तय की। आयोग ने 5 मई, 2011 को कांग्रेस शासन के दौरान अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी और तब से, रिपोर्ट धूल फांक रही है।
कानून व्यवस्था प्रभावित होने का अंदेशा जताया था: राज्य सरकार की ओर से पिछली सुनवाई पर यह अंदेशा जताया गया था कि मेहरानगढ़ दुखांतिका की जांच के लिए गठित जस्टिस जसराज चौपड़ा आयोग की रिपोर्ट के कुछ हिस्से सार्वजनिक किए जाने की सूरत में कानून व्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
आयोग की रिपोर्ट को विधानसभा में रखने सहित सिफारिशों को लागू करने या नहीं करने का निर्णय लेने के लिए गठित कैबिनेट सब कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह आशंका जाहिर की थी। पूर्ववर्ती सरकार ने गत वर्ष 14 अप्रैल सब कमेटी गठित की थी, जिसमें तत्कालीन गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया सहित तीन मंत्री शामिल थे। कैबिनेट सब कमेटी ने पिछले साल 6 सितंबर को इस रिपोर्ट पर विचार-विमर्श किया और इसकी कार्यवाही 20 सितंबर को प्रस्तुत की गई।
अपनी कार्यवाही में सब कमेटी ने कुछ सिफारिशें की हैं और यह पाया कि रिपोर्ट के भाग-2 में वर्णित कुछ तथ्य अनुमानों और मिथकों पर आधारित हैं, जिन्हें यदि सार्वजनिक डोमेन में रखा जाता है, तो इससे जनता पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। परिणामस्वरूप कानून और व्यवस्था की स्थिति खराब हो सकती है।