समाज के लोगों से चवन्नी-अठन्नी का चंदा कर मनाते थे चेटीचंड
वर्ष 1947 में जब सिंध छोड़कर जोधपुर आए तब हमारे पास न व्यापार था ना कोई आशियाना था। चेटीचंड उत्सव मनाने के लिए कोई स्थान तक उपलब्ध नहीं था। मीरपुर खास से आए बाबाजी गुल्लुमल ने अपने घर के बाहर टेंट लगाकर 1948 में अखंड ज्योत स्थापित कर चेटीचंड मेले की शुरुआत की थी। घंटाघर दीवानों की हवेली में हमारे समाज के लोग व्यापार करते थे। वहां हमें तीन गुणा चार फीट की छोटी सी जगह मिलने पर लोगों को असीम खुशी हुई थी। तब सिंधी समाज के लोगों से चंदा एकत्र करते समय 5 व 10 पैसे, चार आने व अठन्नी मिला करते थे। उसी पैसों से ही चेटीचंड मनाया जाता था। वह बहुत कठिन समय था। कोरोनाकाल ने एक बार फिर से उन दिनों की याद ताजा कर दी लेकिन आर्थिक स्थिति तब से कहीं बेहतर है।
बाबा जयरामदास, प्रमुख वरिष्ठ सेवादार, प्राचीन झूलेलाल मंदिर सोजतीगेट
गुलाब सागर में बहराणा साहिब की ज्योत विसर्जन अभी भी याद है..
देश के बंटवारे के समय जब हम गुजरात से होते हुए शरणार्थी के रूप में जोधपुर आए तब मैं 12 साल की थी। चेटीचंड उत्सव जब दीवानों की हवेली में होता था तब मुझे याद है मैं 12 साल की थी। तब हम नवचौकियां में किराए के मकान में रहने लगे थे। चेटीचंड उत्सव में हाथ प्रसादी खाने का अपना आनंद था। गुलाब सागर में बहराणा साहिब की ज्योत विसर्जन मुझे अभी तक याद है। तब न तो कोई संसाधन थे ना ही पैसा था फिर भी मन में उल्लास था आज जब सब कुछ है तो कोरोना महामारी ने उस उल्लास को छीन लिया।
कलावंती भिमानी, 86 वर्ष प्रतापनगर निवासी