शेरगढ़ इलाके के कई लोग सेना में है। हालांकि भंवर सिंह के परिवार से कोई सेना में नहीं था लेकिन मन में देशभक्ति की भावना हिलोरें लेती रहती थी। जब भी कहीं सेना भर्ती रैली की सूचना मिलती, भंवर सिंह वहां पहुंच जाते। आखिरकर एक सेना भर्ती में उनका चयन हो गया। उन्हें 27 राजपूत राइफल्स में भर्ती किया गया। बेटा सेना में नौकरी लग गया तो परिजनों ने शादी की बात चलाई। रिश्ता पक्का कर भंवर सिंह को गांव बुलाया। वे एक माह के अवकाश पर आए। शादी को पन्द्रह दिन ही बीते थे कि करगिल युद्ध की सूचना मिली और अवकाश निरस्त कर लौटना पड़ा। बाद में भंवर सिंह तिरंगे में लिपटकर गांव पहुंचे।
शहीद के भाई करण सिंह इंदा ने बताया कि राज्य व केन्द्र सरकार की ओर से शहीद पैकेज मिला था। बाद में राजस्थान पत्रिका की तरफ से 50 हजार रुपए की सहायता राशि मिली। शहीद के नाम बीकानेर में एक मुरब्बा आवंटित हुआ था। शहीद की शहादत को नमन करने के कुछ दिन तक तो जनप्रतिनिधि व प्रशासनिक अधिकारी आते थे लेकिन धीरे-धीरे भूल गए। अब तो शहीद परिवार के छोटे-बड़े कार्यों पर भी ध्यान नहीं देते हैं।
शेरगढ़ विधानसभा क्षेत्र में बालेसर दुर्गावता निवासी शहीद भंवर सिंह इंदा करगिल युद्ध के प्रथम शहीद हैं। राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय का शहीद भंवर सिंह इंदा के नाम से नामकरण हुआ है। शहीद के घर तक जाने के लिए वर्षों पूर्व ग्रेवल सडक़ बनी थी, जो अब क्षतिग्रस्त है। पेयजल के लिए एक हैंडपंप लगाया गया था जो अब खराब है। वर्तमान में शहीद की वीरांगना जहां रहती हैं। वहां विद्युत कनेक्शन तक नहीं है। अंधेरे में वीरांगना व उनका परिवार रह रहा है। शहीद के नाम से पेट्रोल पंप एवं गैस एजेंसी आवंटन के लिए प्रयास किए थे लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। शहीद स्मारक के लिए भी खूब भागदौड़ की लेकिन कुछ नहीं हुआ। थक हारकर शहीद के परिजनों ने ही घर के पास निजी खर्चे से स्मारक बनवाया।
शहीद के बुजुर्ग माता-पिता आज भी अपने शहीद बेटे को याद करते हैं। लाडले सपूत भंवर सिंह को याद करते ही उनकी आंखों में आंसू छलक पड़ते हैं। साथ ही गर्व महसूस करते हैं कि उनका लाडला सपूत देश की सीमा पर शहीद हुआ है। शहीद भंवर सिंह के 6 भाई एवं एक बहन है।