इसलिए होती है अक्षय तृतीया पर पतंगबाजी गौरतलब है कि शीतकालीन प्रवास पर आए पक्षियों का जीवन पतंगबाजी की परम्परा से आहत ना हो, इसके लिए फलोदी व बीकानेर में सैकड़ों साल पहले अक्षय तृतीया पर पतंगबाजी की परम्परा शुरू हुई थी, जो वर्तमान में भी जारी है।
जानकारों की माने तो अक्षय तृतीया पर झुलसा देने वाली भीषण गर्मी का दौर चरम पर रहता है, ऐसे में विदेशी मेहमान पक्षी यहां से पलायन कर जाते हैं और स्थानीय प्रजाति के पक्षी भी अधिकतर समय पेड़ों की छांव में ही रहते हैं। इससे आकाश पक्षियों से विहिन रहता है। ऐसे में आकाश की छटा में उल्लास, उमंग व भाईचारे का रंग देने के लिए अक्षय तृतीया पर पतंग बाजी की परम्परा का आगाज किया, जो वर्तमान में भी जारी है।
दो दिन रहेगा पतंगों का राज अक्षय तृतीया पर्व के दो दिनों तक आकाश में पतंगों का राज रहेगा और हर मोहल्ले की छतों पर भीषण गर्मी के बावजूद युवा जमकर पतंग बाजी करेंगे। हर घर से वो काटा का शोर सुनाई देगा।
इस बार पतंग महोत्सव की अनूठी पहल फलोदी में यूं तो पतंगबाजी की परम्परा सैकडों साल पुरानी है, लेकिन इस साल पतंगबाजी महोत्सव की अनूठी पहल की जा रही है। यह पतंगबाजी महोत्सव शहर से दूर गुलाब सागर सरोवर के पास आयोजित किया जाएगा। जिसमें शहर के अच्छे पतंगबाजों का हौसला आफजाई के लिए पुरस्कार भी दिया जाएगा।
बाजार में अभी खरीदारी फीकी पतंगों के व्यापारी मदनचंद गुट्सा कोचर ने बताया कि दो साल की कोविड महामारी के बाद इस साल अक्षय तृतीया पर अधिक खरीदारी होने की उम्मीद थी, लेकिन अभी तक पतंगों की बिक्री में तेजी नहीं आई है। इस बार परीक्षाओं में देरी और आर्थिक मंदी के इस दौर में पतंगों के व्यापार में गिरावट आई है, लेकिन उम्मीद है कि अगले दो दिनों में बाजार में पतंग व डोर की बिकवाली बढे़गी और आकाश में पक्षियों के स्थान पर पतंगों का मेला सजेगा।