कूंडे के मौके मुस्लिम समाज के घरों में महिलाओं ने खीर-पूड़ी बना कर घरों के एक पवित्र कोने में मिट्टी के कूण्डों में रख कर वहां नियाज दिलवाई। साथ ही बच्चांे, रिश्तेदारों और पड़ोसियों को बुला-बुला कर बतौर तबर्रुक (प्रसाद) का सेवन करवाया। अलग-अलग घरों में मन्नत और हैसियत के मुताबिक व्यंजन बना कर शीरीनी पर फातेहा लगवाई गई।
कूंडे शरीफ की नियाज नियाज खाने और खिलाने को लेकर सुबह से रात तक बच्चों और महिलाओं में विशेष उत्साह देखा गया। मीठी टिकिया आदि व्यंजन बना कर मिट्टी के कूंडों में रखे जाते हैं। इसलिए आम बोलचाल में इसे कूंडे शरीफ की नियाज कहते हैं। नियाज घर पर बुला कर ही खिलाई जाती है। इसका तबर्रुक किसी के यहां नहीं भेजा जाता।
इससे पूर्व सोमवार शाम से मंगलवार सुबह तक पकवान बनाने का सिलसिला चला और सभी ने अपनी-अपनी सहूलियत के वक्त नियाज लगाई। कूंडे के कारण किराणा की दुकानों पर सूजी, मैदा, शक्कर आदि और कुम्हारों के यहां कूंडों की खूब बिक्री हुई।
कूंडे की नियाज का महत्व भारतीय उपमहाद्वीप यानी हिंदुस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुस्लिम कूंडे की नियाज लगाते हैं। बरेली शरीफ से जुडे धर्म गुुरु आला हजरत के मुताबिक बहारे शरियत में उल्लेख मिलता है कि हजरत इमाम जफर सादिक की याद में उनके ईसाले सवाब के लिए कूंडे भरना जाइज है। इसका अर्थ है कि रजब के पवित्र माह में यह विशिष्ट फातेहा लगाना चाहिए। मुफ्ती मौलाना आलमगीर ने बताया कि हजरत इमाम जाफर सादिक की याद में नियाज दिलाई जाती है। हिजरी साल के रजब महीने में इमाम जाफर सादिक की नियाज लगाना जाइज और दुरुस्त है।