हो सकेगा दीर्घकालिक संरक्षण राजकीय अनुदान से न केवल प्राचीन पाण्डुलिपियों, चित्रावलियों का संरक्षण हो पाएगा, बल्कि वर्तमान में पुरालेखीय सामग्री का डिजीटलाइजेशन जैसे आधुनिक संरक्षण विधियों के माध्यम से दीर्घकालिक संरक्षण का कार्य भी हो पाएगा और प्राचीन लिपियों के पठन-पाठन आदि के माध्यम से उनको जानने वालों का भी संरक्षण प्राप्त होगा। वर्तमान में संस्थान की ओर से विद्वानों एवं शोधार्थियों को निःशुल्क विभिन्न शोध कार्यों में सहायता भी दी जा रही है। वर्तमान में अनुदान बंद होने के पश्चात् ये संस्थाएं निजी स्तर पर संचालित हो रही हैं। जिस तरह से पुरालेखीय संस्थानों को राजस्थान सरकार की ओर से संचालित किया जा रहा है। उसी प्रकार सरकार की ओर से निजी संस्थानों को भी राजकीय अनुदान देकर जीवित रखा जाना चाहिए।
राष्ट्र की एक अमूल्य निधि है पुरा संपदा निजी संस्थाओं में लाखों की संख्या में मौजूद राजस्थानी, बृज, डिंगल, पिंगल, संस्कृत, फारसी, ऊर्दू, अरबी आदि भाषा में लिखे ग्रंथ व प्राचीन पाण्डुलिपियों के डिजीटलाइजेशन, शोध के लिए यदि राज्य सरकार अथवा भारत सरकार से अनुदान मिलता है तो राष्ट्र की एक अमूल्य निधि के लिए उपयोगी सिद्ध होंगे। प्राचीन ग्रन्थों का समयानुसार प्रकाशन एवं पाण्डुलिपि पठन के लिए विशेषज्ञों की कार्यशालाएं आयोजित करना आदि कई ऐसे कार्य होने में मदद मिल सकती हैं जो कि राष्ट्र की एक अमूल्य निधि के लिए उपयोगी सिद्ध होंगे। -डॉ. विक्रम सिंह भाटी, सहायक निदेशक, राजस्थानी शोध संस्थान जोधपुर।