सच्ची मोहब्बत ...जिसने यह जानते हुए अपने साथी से शादी की कि वह छह माह से ज्यादा जीवित नहीं रहेगा... कैंसर ने सपने तबाह किए पढ़ें यहां पूरी कहानी...।
- अब तक 750 से अधिक कैंसर रोगियों की मदद कर चुकी डिम्पल
- 300 से अधिक तैयार कर दिए वॉलेन्टीयर
- कैंसर से पति को खोया और शुरू की खुद की जिन्दगी कैंसर रोगियों के साथ

सिकन्दर पारीक
जोधपुर. जिन्दगी ने सपनों की उड़ान भरनी शुरू ही की थी कि कैंसर ने रास्ता रोक दिया। एक तरफ सपने...अपनापन व मोहब्बत तो दूसरी तरफ लगातार मौत के साथ ताण्डव करता कैंसर। सच्ची मोहब्बत ने हिम्मत दिखाई। पहले शादी रचाई, यह जानते हुए कि मौत की तारीख कैंसर के साथ लिख दी गई है। पति लगातार मौत की गिरफ्त में जा रहा था तो पत्नी उसे बचाने की पूरी कोशिश में जुटी। आखिर बीमारी जीत गई, लेकिन हिम्मत ने हार नहीं मानी। ठान लिया कि वह अब उन तमाम कैंसर रोगियों की हिम्मत बनेंगी, जिनकी जिन्दगी रंगहीन है। यह दास्तां है जोधपुर की बेटी डिम्पल परमार की। आइआइएम कोलकाता में अध्ययन के दौरान सहपाठी नीतेश से प्यार हुआ। दोनों ने अध्ययन के दौरान ही एक स्टार्ट-अप शुरू किया। इधर, नीतेश को सिंगापुर के डवलपमेंट बैंक में प्लेसमेंट मिल गया। खुशियां चारों तरफ मानो बिखर रही थी लेकिन... कैंसर ने ब्रेक लगा दिया। लगातार दो साल तक संघर्ष के बावजूद डिम्पल अपने साथी को नहीं बचा पाई। इन दो सालों के कटु अनुभवों का भार जिन्दगी भर ढोने की बजाय डिम्पल ने कैंसर रोगियों की सेवा में ही जिन्दगी न्यौछावर करने का फैसला किया और आज इनकी संस्था द लव हील्स ऐसे रोगियों की जिन्दगी खुशहाल करने में लगी है। इनमें कई रोगी ऐसे भी हैं, जिन्होंने इस बीमारी को जीत लिया है। बकौल डिम्पल मां इन्द्रा परमार ने उसे हिम्मत दिखाई। उसे याद है जब उसके दादा-दादी वृद्धावस्था में थे और पिता का पैर फैक्चर हो गया था, तब मां सभी का बेहतर तरीके से ख्याल रखती थी। उसी से प्रेरणा मिली। डिम्पल के पिता दिनेश परमार जोधपुर विद्युत वितरण निगम में सहायक अभियंता हैं।
...यों लगा खुशियों को ब्रेक
वर्ष 2016 का जून माह। कार्य में लगातार नीतेश को थकावट रहने लगी। सोचा कि स्टार्ट-अप के चलते तनाव ज्यादा है इसलिए ऐसा हो रहा है। नियमित स्वास्थ्य जांच करवाई तो पैरों तले जमीन खिसक गई। कैंसर की थर्ड स्टेज सामने आई। दोनों युवा साथियों की उम्र महज 26-27 साल। फेफड़ों में 12 ट्यूमर थे। एकबारगी लगा कि सब टूट गया लेकिन दोनों ने हिम्मत दिखाई। कहा-दुनिया में नामुमकिन कुछ नहीं, इसका इलाज कराएंगे। भारत के तमाम कैंसर विशेषज्ञों ने कहा- अब मौत को स्वीकार करो, कोई विकल्प नहीं। आखिर इलाज के लिए अमरीका के एमडी एंडरसन कैंसर सेंटर पहुंचे। नीतेश-डिम्पल ने जनवरी 2018 में द लव हील्स कैंसर एनजीओ उन कैंसर रोगियों के लिए शुरू किया, जो इससे लड़ नहीं पा रहे थे, बीमारी को लेकर नासमझ थे। मार्च 2018 में नीतेश इस दुनिया को अलविदा कह गया। जीवन साथी के जाने के बाद डिम्पल हिन्दुस्तान लौटी। यहां उसने पूरी तरह कैंसर रोगियों की सेवा के लिए जीवन समर्पित कर दिया क्योंकि नीतेश और उसने संयुक्त रूप से यह सपना बुना था।
अब यह है कार्य
अब डिम्पल का एनजीओ द लव हील्स ऐसे रोगियों को बेहतर तरीके से जीने में मदद करता है। सभी चिकित्सा पद्धतियों मसलन एलोपैथिक, होम्यापैथिक व आयुर्वेद की संयुक्त जानकारी प्रदान की जाती है। चिकित्सा के साथ ही भावनात्मक व आध्यात्मिक रूप से कैंसर रोगियों व उनके परिजनों की मदद की जाती है। अब तक 750 से अधिक कैंसर मरीजों की देखभाल की है और इस दरम्यिान 300 से अधिक स्वयंसेवकों की टीम तैयार कर दी है।
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