वर्ष 1988 से यह पाठ्यक्रम MBM Engineering College के कम्प्यूटर साइंस विभाग में चल रहा था और यहीं के शिक्षक पढ़ाते आ हैं। AICTE से मान्यता भी एमबीएम के नाम से मिली हुई है। एमबीएम से MCA करने वाले पूर्व छात्र अमरीका की टेस्ला, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल जैसी कम्पनियों में उच्च पदों पर कार्यरत है। छात्र छात्राओं ने व्यास विवि में रहने से मना कर दिया है। विद्यार्थियों का कहना है कि उनके साथ धोखा किया गया है। उन्होंने एमबीएम के नाम व उसमें होने वाली पढ़ाई के चलते ही प्रवेश लिया है अन्यथा वे किसी अन्यत्र संस्थान में चले जाते। विवि में जिस यूसिक केंद्र में उनको भेजा है वहां कोई भी स्थाई शिक्षक नहीं है। 350 रुपए प्रति कॉलांश वाली गेस्ट फैकल्टी से एमसीए की पढ़ाई करवाई जाएगी। एमबीएम विवि बन जाने से व्यास विवि के पास कोई कम्प्यूटर लैब भी नहीं बची है। ऐसे में एमसीए छात्र छात्राएं खुद को ठगा-ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
प्रवेश परीक्षा के जरिए मिलता है प्रवेश प्रदेश के इलेक्ट्रोनिक गवर्नेंस केंद्र की ओर से राजस्थान एमसीए प्रवेश प्रक्रिया पूरी की जाती है, जिसके तहत प्रदेशस्तरीय काउंसलिंग प्रक्रिया के जरिए प्रवेश दिया जाता है। प्रदेश के अव्वल विद्यार्थी एमबीएम में प्रवेश लेना चाहते हैं। एमबीएम के नाम से 30 सीटें हैं। यहां शुल्क भी सरकारी कॉलेज के अनुसार 30 से 40 के मध्य ही है।
एक टीचर के भरोसे एमसीए खींचा व्यास विवि ने एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज में कम्प्यूटर साइंस विभाग की शिक्षक रचना वर्मा को छोडकऱ सभी शिक्षकों को एमबीएम विवि को हस्तांतरित कर दिया था। रचना की नियुक्ति एमसीए पाठ्यक्रम के लिए हुई थी लेकिन एक अकेली शिक्षिका पूरे पाठ्यक्रम को नहीं पढ़ा सकती।
----------------------बीसीए की तरह एमसीए भी चलाएंगे हम जैसे बीसीए चला रहे हैं, वैसे ही एमसीए भी चला लेेंगे। बच्चों की डिग्री पर जेएनवीयू के साथ एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज भी लिखा जाएगा। - प्रो केएल श्रीवास्तव, कुलपति, जेएनवीयू जोधपुर
हम पढ़ाने के लिए तैयार है एमसीए हम एमसीए को पढ़ाने के लिए तैयार है। बच्चे मेरे पास भी ज्ञापन लेकर आए थे। व्यास विवि के साथ मिलकर समस्या हल की जाएगी। - प्रो अजय शर्मा, कुलपति, एमबीएम विश्वविद्यालय जोधपुर