्रपंचकुण्डा में स्थित 46 छतरियां पुरातात्विक एवं स्थापत्य कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। कुछ छतरियां कलात्मक दृष्टि से भव्य नहीं है। ऐसा इसलिए संभव है कि तत्कालीन राजनैतिक जीवन में उथल.पुथल रही हो। जिसने आर्थिक विपन्नताओं को जन्म दिया हो। पंचकुण्डा के पास जोधपुर के शासकों की रानियों की शमशान भूमि होने के कारण यहां पर लगातार रानियों की स्मृति में छतरियों का निर्माण होता रहा है। छतरियों के पास मारवाड़ के पूर्व शासकों राव चूण्डा राव राणमल और राव गंगा आदि के स्मारक बने हैं। स्थापत्य कला की दृष्टि से राव गांगा देवल जैसा स्मारक पूरे मारवाड़ में अन्यत्र कहीं भी नहीं है।
पंचकुण्डा पर मारवाड़ के प्रारम्भिक राजा व रानियों की छतरियां बनी है । इनमें जोधपुर कीमहारानी कच्छवाही सूर्य कंवर जयपुर नरेश प्रतापसिंह की पुत्री जिनकी मृत्यु 28 जनवरी सन 1826 को हुई थी। उनकी स्मृति में बनाई गई छतरी स्थापत्य कला की दृष्टि से बहुत सुन्दर है। छतरी में 32 खंबे लगे होने के साथ ही बीचों.बीच छोटी संगमरमर की सफेद छतरी बनाकर उसमें चरण चिह्न शिलालेख के साथ अंकित किए गए हैं।
मंडोर पचकुण्डा में अधिकांश शिलालेख नष्टप्राय होने के कारण कौन सी छतरीकिसकी है यह पहचान करना मुश्किल है। यहां तक राव जोधा की छतरी भी अभी तक
पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं है।