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आपातकाल के संस्मरण :इमरजेंसी के दौरान जोधपुर जेल में बंद थे कई नेता

locationजोधपुरPublished: Jun 25, 2018 07:04:54 pm

Submitted by:

M I Zahir

देश मेें आपातकाल लगा तो उस समय पूरे देश से नेताओं और कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी हुई थी। इमरजेंसी के दौैरान मीसा बंदियों के कई संस्मरण हैं। उन्हीं में से एक जोधपुर के मीसा बंदी जुगल तापडि़या के संस्मरण :
 
 

Emergency 1975

Emergency 1975

जोधपुर. मैं आपातकाल 1975-77 में जोधपुर केंद्रीय कारागृह में मीसा बंदी था। तब 27, 28 व 29 जून 1975 को तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने कई अध्यादेशों के जरिये संवैधानिक अधिकार निलम्बित करने के अपने अधिकारों का जम कर दुरुपयोग किया। लोकसभा में बहस के दौरान विपक्षी सदस्यों की संख्या नगण्य सी थी। क्योंकि अधिकतर विपक्षी सदस्यों-नेताओं को तो 25-26 जून की मध्य रात्रि में ही गिरफ्तार कर लिया गया था।
प्रमुख नेता कारागार में बंद कर दिए थे

मुझे याद है कि जनसंघ के वरिष्ठ नेता सांसद जगन्नाथ राव जोशी ने बहस में हिस्सा लेते हुए कहा था-हम एक आपातकाल तो 1971 (भारत पाक युद्ध के दौरान) से झेल रहे हैं। उस समय देश की परिस्थितियां ध्यान में रखते हुए विपक्ष से भी सलाह मशविरा किया गया, संसद में बहस भी हुई, लेकिन वर्तमान की इन विशेष परिस्थितियों में जब आपातकाल (25 जून 1975) की घोषणा की गई, तब विपक्ष के प्रमुख नेताओं को कारागार में बंद कर दिया गया।
इंदिरा गांधी का निर्वाचन अवैध घोषित
वहीं 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहनलाल सिन्हा ने राजनारायण बनाम इंदिरा गांधी चुनाव याचिका का निस्तारण करते हुए अपने संसदीय चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का निर्वाचन अवैध घोषित करते हुए उन्हे अनैतिक कदाचार का दोषी माना और 6 वर्षों के लिए उन्हे चुनाव के लिए अयोग्य घोषित कर दिया था। दरअसल इंदिरा गांधी ने उच्च न्यायालय के इस निर्णय को अपनी निजी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया और 25 जून 1975 की अद्र्ध रात्रि को संविधान की धारा 352 के तहत अपने अधिकारों का बेजा उपयोग करते हुए देश में एक ओर आपातकाल घोषित कर दिया और तुरंत प्रभाव से अनुच्छेद 19 व 21 के तहत प्रदत्त नागरिक अधिकार अनिश्चितकाल के लिए निलम्बित कर दिए गए। आश्चर्य इस बात का है कि यह निर्णय पहले लिया गया और कैबिनेट की बैठक सुबह 06 बजे केवल सूचनार्थ बुलाई गई।
अखबारों पर कड़ी सेंसरशिप

आपातकाल के दौरान अखबारों पर कड़ी सेंसरशिप लागू कर दी गई, जिसके विरोध में कुछ राष्ट्रीय समाचार पत्रों ने विरोध स्वरूप तीन दिवस तक अपना संपादकीय को काला रंग दिया। जिन समाचार पत्रों ने कुछ आनाकानी करने की कोशिश की, उनकी बिजली काट दी गई। आपातकाल हटने के बाद एक कार्यक्रम में तत्कालीन सूचना व प्रसारण मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने पत्रकारों के समक्ष एक बड़ी मौजूं टिप्पणी की-आपातकाल में आपको कुछ झुकने को कहा गया, परंतु आप तो Óरेंगने लगे, नेताओं-कार्यकर्ताओं को मीसा (मेंटेनेन्स ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) और डीआईआर (डिफेन्स इंडिया रूल) के तहत गिरफ्तार किया गया।
बडे़-बडे़ नेता थे जोधपुर जेल में
जोधपुर जेल में तब विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री आचार्य गिरिराज किशोर, पूर्व उप मुख्यमंत्री हरिशंकर भाभड़ा, पूर्व राजस्व मंत्री चौधरी कुम्भाराम आर्य, पूर्व गृह मंत्री प्रो.केदार, बिरदमल सिंघवी, राजेंद्र गहलोत, दामोदरलाल बंग, हीराचंद बोहरा, संघ के प्रांतीय संघचालक राधाकृष्ण रस्तोगी, वरिष्ठ प्रचारक कृष्ण भैया, नगर संघचालक शंकरराज लोढ़ा और प्रांत कार्यवाह प्रो.शारदा शरणसिंह इत्यादि सहित आनंद मार्ग जमाते-इस्लामी और सीपीएम (माक्र्सवादी) सहित जोधपुर संभाग के जनसंघ, संघ व विपक्षी दल के कार्यकर्ताओं को रखा गया। जिनकी संख्या लगभग 350 थी।
प्रोफेसर ने लिखा माफीनामा

यहां मैं जोधपुर का एक किस्सा बताना चाहूंगा। अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक का आलम यह था कि जोधपुर विवि के एक प्रोफेसर ने कक्षा में ब्लेक बोर्ड पर -श्रीमती इंदिरा गांधी तानाशाह हैं- लिख दिया, इस घटना के बाद प्रो.साहब पर गिरफतारी की तलवार लटकने लगी, बड़ी मुश्किल से माफ ीनामा लिख कर प्रोफेसर साहब बचे।
जेल में दिनचर्या
कारागृह में संघ जनसंघ से जुडे नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की सभी की दिनचर्या, विशेषकर निश्चित थी, जिसके अनुसार बजे सभी को सुबह 05 जागना पड़ता था। सुबह 6 बजे शाखा लगती थी। सुबह 8 बजे अल्पाहार, दोपहर 12 से 2 बजे तक भोजन, दोपहर 2 से 3 बजे तक विश्राम, दोपहर 3 से 05 बजे तक धार्मिक-सामाजिक ग्रंथों का पठन और चर्चा आदि करते थे। शाम 5 से 6 बजे तक चाय, शाम 6.30 बजे वापस शाखा, रात 8 बजे समसामयिक विषयों पर चर्चा, 9 बजे रात्रि खाना और रात 10 बजे शयन।
जब लोकतंत्र का सवेरा हुआ

चूंकि देशभर में सेंसरशिप लागू थी। अत:समाचारों की विश्वसनीयता के लिए बीबीसी लंदन की हिंदी सेवा और वॉइस ऑफ अमरीका आदि विदेशी प्रसारण पर निर्भर रहना पडता था। तब 21 मार्च 1977 को केंद्र की मोरारजी देसाई के नेतृत्व में गठित प्रथम गैर कांग्रेसी सरकार व सरकार का पहला निर्णय आपातकाल समाप्त की घोषणा रहा । इस तरह 19 माह के घने-अंधेरे के बाद देश में लोकतंत्र ने राहत की सांस ली और प्रेस को पुन: आजादी मिली।
_जुगल तापडि़या

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