जोधपुर.
अतिरिक्त सिविल न्यायाधीश और पीठासीन महानगर मजिस्ट्रेट (संख्या दस) अलका जोशी ने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत एक परिवाद का निस्तारण करते हुए आदेश दिया कि नाबालिग पति के खिलाफ महिलाओं के घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही नहीं हो सकती तथा उसे पत्नी को भरण-पोषण देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
अतिरिक्त सिविल न्यायाधीश और पीठासीन महानगर मजिस्ट्रेट (संख्या दस) अलका जोशी ने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत एक परिवाद का निस्तारण करते हुए आदेश दिया कि नाबालिग पति के खिलाफ महिलाओं के घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही नहीं हो सकती तथा उसे पत्नी को भरण-पोषण देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
मामले के अनुसार जोधपुर निवासी संध्या उर्फ पूजा ने नागोरी गेट स्थित कलाल कॉलोनी निवासी अपने पति राकेश के खिलाफ घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत मुकदमा दायर कर पंद्रह हजार रुपए प्रतिमाह भरण पोषण की मांग की थी।
अप्रार्थी की ओर से अधिवक्ता हैदर आगा ने विधिक एतराज जताते हुए तर्क दिया कि पति की आयु 17 वर्ष 9 माह है। वह अभी वयस्क नहीं है। घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 2 (क्यू) के तहत सिर्फ वयस्क पुरुष के विरुद्ध ही कार्यवाही हो सकती है।
इसमें यह भी आवश्यक है कि विवाह के बाद पति अपनी पत्नी के साथ घरेलू नातेदारी में रहे जबकि इस मामले में पति अपनी पत्नी के साथ नातेदारी में नहीं रहा। इसलिए प्रार्थिया पति से घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण.पोषण भत्ता प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय ने वाद खारिज करते हुए कहा कि भरण-पोषण सिर्फ वयस्क पति से ही दिलवाया जा सकता है। साथ ही यह भी आवश्यक है कि पत्नी उसके साथ घरेलू नातेदारी में रही हो।