विवि के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ प्रेमप्रकाश व्यास ने बताया कि स्वर्णप्राशन दवा में 90 प्रतिशत शुद्ध सोने के 28 से 35 नैनोमीटर आकार के कण होंगे। मनुष्य की आतें 58 नैनोमीटर से छोटे कणों को ही अवशोषित कर सकती है और रक्त के जरिए ये कण लक्षित अंग तक पहुंच सकते हैं। नैनो आकार के कण होने से रक्त कोशिकाओं के इकठ्ठा होने, प्रोटीन अवशोषण व साइटोटोक्सिसिटी का खतरा नहीं रहेगा। छोटे कण अंतरकोशिकीय जंक्शन को आसानी से ढीला कर सकेंगे।
स्वर्णप्राशन दवा में स्वर्णभस्म के अलावा गाय का घी और प्राकृतिक शहद लेना होगा। घी व शहद का अनुपात 2:1 होना चाहिए। गाय के घी का पीएच 4.31 व शहद का 4.16 के आसपास होना चाहिए। घी व शहद का संयुक्त पीएच 4.40 व विशेष गुरुत्व 1.24 होना चाहिए।
– आदर्श सिंगल डोज में 0.10 मिलीग्राम स्वर्ण भस्म, 500 मिलीग्राम घी और 1 मिलीमीटर शहद होगा।
– दवा मुख्य से ड्रॉप फॉर्म में दी जाएगी। मानक तापमान 37 डिग्री है।
– स्वर्णप्राशन दवा एक दिन के शिशु से लेकर 16 वर्ष तक के बच्चे को दी जा सकेगी।
– वर्तमान में तीन अवधि रहेगी। एक महीने तक लगातार, 6 महीने तक लगातार और एक साल तक लगातार, लेकिन सभी को पुष्य नक्षत्र पर बूस्टर डोज लेनी होगी।
– एक साल से अधिक स्वर्णप्राशन दवा के लिए आगे रिसर्च किया जाएगा।
एक महीने तक की दवा याददाश्त बढ़ाने, 6 महीने की स्मृति, अनुभूति, धारण शक्ति बढ़ाने और 12 महीने की स्वर्णप्राशन सामान्य रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, बच्चे का बेहतर शारीरिक व मानसिक विकास (लंबाई के अनुसार वजन व स्मृति), एलर्जी व संक्रमण रोकनाथ में कारगर है।
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प्रो अभिमन्यु कुमार, कुलपति, डॉ एसआरएस राजस्थान आयुर्वेद विवि जोधपुर