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भारत रंग महोत्सव की जोधपुर में मची धूम, देखें एक झलक

जोधपुर.राष्ट्रीय नाट्य विदयालय की मेजबानी में पांच दिवसीय भारत रंग महोत्सव की धूम मची हुई है। रंगकर्मियों और रंग प्रेमियों के लिए यह एक अनूठा आयोजन है। समारोह का पहला दिन रंगकर्म की प्रयोगधर्मिता के नाम रहा।
 

जोधपुरFeb 07, 2024 / 06:59 pm

M I Zahir

नाटक खेती और आजादी की लड़ाई के नाम रहा
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जोधपुर. राष्ट्रीय नाटय विदयालय की मेजबानी में जय नारायण व्यास स्मृति भवन, टाउन हॉल में आयोजित भारत रंग महोत्सव में पहला नाटक द ब्रेड ऑफ लाइफ नाटक खेती और आजादी की लड़ाई के नाम रहा। इसमें माध्यम से खेती और स्वतंत्रता संग्राम में खानखोजे के उल्लेखनीय योगदान को दर्शकों के सामने चित्रित किया गया। नाटक में मंगला सनप के लेखन का कमाल मंगला सनप लिखित द ब्रेड ऑफ लाइफ डॉ पांडुरंग खानखोजे द अनसंग हीरो नाटक में दर्शकों की भीड़ ने कलाकारों का हौसला बनाए रखा। हॉल में लाइट और साउंड ने नाटक को और रोमांचित बना दिया। नागपुर के कलाकारों ने अपनी कला से दर्शकों को अपनी सीट पर बैठे रहने को मजबूर कर दिया।

नाटक ने दिखाया बचपन में देश प्रेम
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नाटक खानखोजे के बचपन को उभारते हुए शुरू हुआ जिसमें बचपन में ही उसके मन में देश प्रेम की भावना जाग्रत करने से हुई। खानखोजे में भी लोकमान्य तिलक और देश के कई क्रांतिकारी की तरह देश के लिए कुछ करने का जुनून जागा। बचपन से अपने पिता से झूठ बोल कर स्कूल जाने की जगह दोस्तों के साथ मिलकर देश सेवा के लिए टोलियां बनानी शुरू कीं और आजादी के लिए अ लख जगाई। पिता के लाए गए शादी के प्रस्ताव को ठुकरा कर विदेश गए। वहां भी खानखोजे ने मातृभूमि के लिए लडाई जारी रखी।

विभिन्न संघर्षों को सुंदरता से प्रस्तुत किया
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इस नाटक में खानखोजे के विभिन्न संघर्षों को सुंदरता से प्रस्तुत किया गया। खानखोजे अंग्रेजों से बचने के लिए अपना नाम बदल कर मोहम्मद खान की पहचान से रहते थे। अपने पिता को पत्रों के माध्यम से वे देश के हालत और अंग्रेजों के जनता पर किए गए जुल्म बताते थे। खानखोजे ने गदर आंदोलन भी किया। लंदन, पेरिस, बर्लिन, सेन फ्रांसिस्को जैसी कई जगह पर वे अंग्रेजों से बचते हुए घूमते रहे।

नाटक में दिखे सख्ती और अंग्रेजों के अत्याचार
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इस नाटक में भारत में पुलिस ने खानखोजे के पिता पर भी सख्ती दिखाई मजबूर पिता ने अंग्रेजों से बेटे को वापस देश लाने की विनती दिखाई, लेकिन अंग्रेजों के अत्याचार से परेशान बेटे से देश न लौटने की मिन्नत करते रहे। उधर खानखोजे विदेश में मजदूरी करते हुए अंग्रेजी भाषा सीख देश को आजाद कराने की योजना बनाते रहे। विदेश में ही उन्होंने शादी कर ली। वे कुछ समय बाद भारत लौटे।यहाँ भी एक आजाद भारत में जीने का सपना लेकर जीते रहे।

इट और साउंड के खूबसूरत और क्लासिक नजारे
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इस नाटक की खास बात यह रही कि इसमें निर्देशकीय कौशल, रंगकर्म की बारीकियों, लाइट और साउंड के खूबसूरत और क्लासिक नजारे दिखाई दिए। फोटो : एस के मुन्ना

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