विभाजन के घावों के निशां बाकी
खंडपीठ ने आदेश जारी करते हुए कहा कि 1947 में हुए देश के विभाजन की त्रासदी के निशान आज भी पाक विस्थापितों में गहरे घावों के रूप में देखने को मिल रहे हैं। पाकिस्तान व बांग्लादेश में माइनर भारतीय के रूप में सामाजिक व राजनीतिक भेदभाव के चलते अत्यंत दुर्दशापूर्ण हालात में रहना पड़ता है। ऐसे में प्रत्येक व्यक्ति भारत में आकर शरण लेते हुए अपना शेष जीवन शांतिपूर्ण व गरिमापूर्ण माहौल में बिताना चाहता है।
यही कारण है कि हजारों की संख्या में विशेष रूप से पश्चिमी राजस्थान में ऐसे लोगों ने पलायन करते हुए शरण ली है। केन्द्र सरकार की ओर से इन लोगों के लिए समय समय अधिसूचनाओं व सर्कुलर्स जारी करते हुए इनको भारत में नागरिकता देने के नियम सरल बनाए जा रहे हैं। इसके बावजूद नियमों के चलते इन लोगों को वापस मूल देश में डिपोर्ट कर दिया जाता है। वहां फिर से ऐसे लोगों के दुर्दिन शुरू हो जाते हैं।
केन्द्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए 24 अगस्त तक जवाब तलब किया हे। राज्य सरकार की ओर से एएजी कांतिलाल ठाकुर ने, जबकि केन्द्र सरकार की ओर से विपुल सिंघवी ने नोटिस प्राप्त किए। खंडपीठ ने मामले में कोर्ट केो सहयोग देने के मद्देनजर कमल जोशी व सज्जनसिंह राठौड को न्यायमित्र नियुक्त किया। मामले की अगली सुनवाई 24 अगस्त को होगी।