जोधपुर

टिड्डी से गोडावण जैसे पक्षियों व मधुमक्खी आदि कीटों पर मंडराने लगा है खतरा, पेस्टिसाइड से हो सकते हैं दुष्प्रभाव

रेगिस्तानी टिड्डी से न केवल फसलों को भारी खतरा है वरन पर्यावरण मित्र कीट और टिड्डी खाने वाले पक्षी भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। टिड्डी मारने के लिए किए जाने वाले पेस्टिसाइड स्प्रे के कारण मधुमक्खी, तितली जिसे पर्यावरण मित्र कीट मर रहे हैं।

जोधपुरMay 31, 2020 / 12:52 pm

Harshwardhan bhati

टिड्डी से गोडावण जैसे पक्षियों व मधुमक्खी आदि कीटों पर मंडराने लगा है खतरा, पेस्टिसाइड से हो सकते हैं दुष्प्रभाव

गजेंद्रसिंह दहिया/जोधपुर. रेगिस्तानी टिड्डी से न केवल फसलों को भारी खतरा है वरन पर्यावरण मित्र कीट और टिड्डी खाने वाले पक्षी भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। टिड्डी मारने के लिए किए जाने वाले पेस्टिसाइड स्प्रे के कारण मधुमक्खी, तितली जिसे पर्यावरण मित्र कीट मर रहे हैं। परागण नहीं होने से पादप पारिस्थितिकी प्रभावित हो सकती है। गोडावण, कौवे, चील, बाज, कबूतर जैसे पक्षी पेस्टिसाइड लगी टिड्डी खाने से काल के ग्रास बन सकते हैं।
सांप, नेवले, पाटा गो जैसी छिपकलियां भी मरे हुए टिड्डे खाने से जहर के प्रभाव में आकर खुद जान गंवा सकती हैं। पिछले साल टिड्डी हमले के दौरान वन विभाग की आपत्ति के बाद जैसलमेर के कुछ क्षेत्रों में गोडावण को बचाने के लिए कई बार नियंत्रण कार्यक्रम रोका गया था और गोडावण बचाते हुए पेस्टिसाइड स्प्रे किया गया था। शनिवार को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से टिड्डी पर हुई वेबीनार में भी कीटनाशकों के दुष्प्रभाव व उसके नियंत्रित प्रयोग की बात कही गई।
जहर का काम करते हैं पेस्टिसाइड
टिड्डी को मारने के लिए वर्तमान में टिड्डी चेतावनी संगठन (एलडब्ल्यूओ) की ओर से मेलाथियान 96 प्रतिशत का उपयोग किया जा रहा है जो ऑर्गेनोफॉस्फेट प्रकार का पेस्टिसाइड है। इससे टिड्डी का तंत्रिका तंत्र शिथिल होकर वह नीचे गिर जाती है। इसके अलावा क्लोरपायरिफॉस और लेमड़ा जैसे पेस्टिसाइड उपयोग में लिए जा रहे हैं। कीटनाशक विशेषज्ञों के अनुसार किसानों को पेस्टिसाइड उपयोग करने से पहले दस्ताने पहनने, सुबह और शाम स्प्रे करने, पास में पानी का रिजर्वायर नहीं होने, अन्य पशु पक्षियों का ध्यान रखते हुए छिड़काव करना चाहिए।
खाद्य शृंखला व भू-जल में जाने का खतरा
सामान्यत: फसलों को कीट व बीमारी से बचाने के लिए 1-5 प्रतिशत सांद्र्रता वाले पेस्टीसाइड स्पे्र किए जाते हैं लेकिन टिड्डी मारने के लिए 50 से लेकर 96 प्रतिशत तक सांद्र्रता का पेस्टीसाइड उपयोग होता है जो एक तरह से जहर का काम करता है। फसलों के जरिए इनके खाद्य शृंखला में जाने और भू-जल में मिलकर मानव उपयोग में आने का भी खतरा रहता है।
सही तरीके से करें तो खास दुष्प्रभाव नहीं
गाइडलाइन के अनुसार अगर पेस्टीसाइड स्प्रे करें तो इसका खास दुष्प्रभाव नहीं होता है। इसकी डोज नियंत्रित और सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करनी चाहिए।
– डॉ. एमएम सुंदरिया, कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर
टिड्डी मारनी तो पड़ेगी ही
टिड्डी को मारने के लिए वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र की गाइडलाइन के अनुसार ही पेस्टीसाइड स्प्रे किया जाता है। यह ऐसा ही जैसा शत्रु देश द्वारा आक्रमण करने पर अपनी सुरक्षा करते हुए कुछ नुकसान खुद उठाना।
– डॉ. आरएन त्रिपाठी, प्रधान वैज्ञानिक, केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर
कुछ समय तक फसलों से दूर रहे किसान
पेस्टीसाइड स्प्रे करने के बाद किसानों को वहां से हट जाना चाहिए। कुछ समय तक फसलों को छुना नहीं चाहिए। वैसे मैलाथियान वाष्पशील है कुछ समय में ही उड़ जाता है।
– डॉ. केएल गुर्जर, उप निदेशक, टिड्डी चेतावनी संगठन जोधपुर

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