यहां हैं वंशावलियों के चित्र
इस शानदार इमारत में अंदर जोधपुर नरेशों के वंशावलियों के चित्र बनाए गए हैं। महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय (1837 -1895 ई. ) की स्मृति में बने इस जसवन्त थड़े में महाराजा जसवन्तसिंह द्वितीय से लेकर महाराजा हनवंतसिंह तक की सफेद पत्थर से निर्मित छतरियां बनी हुई हैं। साथ ही महारानियों के स्मारक भी देखने लायक हैं। मोक्ष के धाम जसवंत थड़ा का आज भी पुराना वैभव उसी रूप में कायम है जिस कला रूप में यह बना था। जसवंत थड़े के पास ही महाराजा तखतसिंह के परिवार के सदस्यों की छत्तरियां भी बनी हुई हैं।
इस शानदार इमारत में अंदर जोधपुर नरेशों के वंशावलियों के चित्र बनाए गए हैं। महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय (1837 -1895 ई. ) की स्मृति में बने इस जसवन्त थड़े में महाराजा जसवन्तसिंह द्वितीय से लेकर महाराजा हनवंतसिंह तक की सफेद पत्थर से निर्मित छतरियां बनी हुई हैं। साथ ही महारानियों के स्मारक भी देखने लायक हैं। मोक्ष के धाम जसवंत थड़ा का आज भी पुराना वैभव उसी रूप में कायम है जिस कला रूप में यह बना था। जसवंत थड़े के पास ही महाराजा तखतसिंह के परिवार के सदस्यों की छत्तरियां भी बनी हुई हैं।
महाराजा जसवंतसिंह की याद में सरदारसिंह ने बनवाया
यह राजा जसवंतसिंह द्वितीय की याद में उनके वारिस राजा सरदारसिंह ने बनवाया था। राजा जसवंतसिंह द्वितीय से पहले जोधपुर के नरेशों का मंडोर में अंतिम संस्कार होता था। इनके उलट महाराजा जसवंतसिंह की मर्जी के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार किले की तलहटी में स्थित देवकुंड के किनारे पर किया गया । तब से जोधपुर नरेशों की इसी जगह पर अंत्येष्टि की जाती है। यह सफेद पत्थरों से बनी एक कलात्मक खूबसूरत इमारत है।
यह राजा जसवंतसिंह द्वितीय की याद में उनके वारिस राजा सरदारसिंह ने बनवाया था। राजा जसवंतसिंह द्वितीय से पहले जोधपुर के नरेशों का मंडोर में अंतिम संस्कार होता था। इनके उलट महाराजा जसवंतसिंह की मर्जी के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार किले की तलहटी में स्थित देवकुंड के किनारे पर किया गया । तब से जोधपुर नरेशों की इसी जगह पर अंत्येष्टि की जाती है। यह सफेद पत्थरों से बनी एक कलात्मक खूबसूरत इमारत है।
सूफियाना स्वर की नई कहानी
अलस भोर की पहली किरण के साथ ही यह भवन सुहाना लगता है। सूरज की रश्मियों की छुअन से निखरते इसके सफेद झरोखे और कंगूरे स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं। यह इमारत चांदनी रात में बहुत खूबसूरत दिखाई पड़ती है। स्काउट गाइड, एनसीसी, एनएसएस, स्कूल कॉलेज के भ्रमण दल, देसी विदेशी सैलानी इसे देखने आते हैं। जोधपुर रिफ के आयोजन के बाद से इसकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ है। रिफ के दौरान विख्यात गायकों की आवाज में अलसभोर और संध्या आरती के समय कबीर वाणी माहौल में भक्ति रस घुलता है। सुबह- शाम जसवंत थड़ा से भजनों की मधुर स्वर लहरियां गंूजती है हैं तो नीचे उसी वेला में सुबह फज्र और शाम को अस्र-मगरिब की अजान की आवाज गंूजती है।
अलस भोर की पहली किरण के साथ ही यह भवन सुहाना लगता है। सूरज की रश्मियों की छुअन से निखरते इसके सफेद झरोखे और कंगूरे स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं। यह इमारत चांदनी रात में बहुत खूबसूरत दिखाई पड़ती है। स्काउट गाइड, एनसीसी, एनएसएस, स्कूल कॉलेज के भ्रमण दल, देसी विदेशी सैलानी इसे देखने आते हैं। जोधपुर रिफ के आयोजन के बाद से इसकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ है। रिफ के दौरान विख्यात गायकों की आवाज में अलसभोर और संध्या आरती के समय कबीर वाणी माहौल में भक्ति रस घुलता है। सुबह- शाम जसवंत थड़ा से भजनों की मधुर स्वर लहरियां गंूजती है हैं तो नीचे उसी वेला में सुबह फज्र और शाम को अस्र-मगरिब की अजान की आवाज गंूजती है।
जसवंत थड़ा : फैक्टफाइल
नींव रखी : महाराजा सरदारसिंह ने 1900 ई. में पूर्व
अनुमानित खर्च : 5 जनवरी 1904 को एक लाख 12 हजार 30 रुपये स्वीकृत किए गए
फव्वारे व बगीचा लगाने की मंजूरी : 26 जनवरी 1907 को
नरेशों की तस्वीरें लगीं : सन 1921 ई. के सितम्बर माह में
कुल खर्च : 2,84,678 रुपये।
…
आर्किटेक्ट थे बुद्धमल और रहीमबख्श
प्रमुख इतिहासकार प्रो. जहूर खां मेहर के अनुसार जसवंत थड़ा का नक्शा मुंंशी सुखलाल कायस्थ ने बनाया और 1 जनवरी 1904 को रेजीडेन्ट जेनिन ने यह थड़ा बनाने की मंजूरी दी थी। जसवंत थड़ा के आर्किटेक्ट बुद्धमल और रहीमबख्श थे। इस इमारत की बनावट में खूबसूरती और कलात्मकता का पूरा ख्याल रखा गया।
नींव रखी : महाराजा सरदारसिंह ने 1900 ई. में पूर्व
अनुमानित खर्च : 5 जनवरी 1904 को एक लाख 12 हजार 30 रुपये स्वीकृत किए गए
फव्वारे व बगीचा लगाने की मंजूरी : 26 जनवरी 1907 को
नरेशों की तस्वीरें लगीं : सन 1921 ई. के सितम्बर माह में
कुल खर्च : 2,84,678 रुपये।
…
आर्किटेक्ट थे बुद्धमल और रहीमबख्श
प्रमुख इतिहासकार प्रो. जहूर खां मेहर के अनुसार जसवंत थड़ा का नक्शा मुंंशी सुखलाल कायस्थ ने बनाया और 1 जनवरी 1904 को रेजीडेन्ट जेनिन ने यह थड़ा बनाने की मंजूरी दी थी। जसवंत थड़ा के आर्किटेक्ट बुद्धमल और रहीमबख्श थे। इस इमारत की बनावट में खूबसूरती और कलात्मकता का पूरा ख्याल रखा गया।
-एम आई जाहिर