पहले जालोरी गेट चौराहे को छोटा करने का प्रयोग किया गया। बाद में उसे बड़ा किया गया। उसके बावजूद ट्रैफिक व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ। यहां हर वक्त वाहनों के आपस में भिडऩे का अंदेशा बना रहता है। इसी के आगे ओलंपिक रोड पर फलों के ठेले खड़े थे। ज्यूस व फूड कॉर्नर के खोमचे भी हैं। आगे महात्मा गांधी अस्पताल है। इन ठेलों से अस्पताल में आने वाले मरीजों के परिजन व अन्य खरीदारी करते हैं। इस कारण ये ठेले परंपरागत रूप से वर्षों से यहीं खड़े होते हैं।
महात्मा गांधी अस्पताल की 12 करोड़ रुपए की न्यू आउटडोर विंग अब तक शुरू नहीं हो पाई है। कई माह तक इसका निर्माण बंद रहा, इसके बाद पार्र्किंग के लिए पहले ढाई करोड़ फिर साढ़े चार करोड़ रुपए की मांग की गई। जबकि ये आउटडोर ब्लॉक शुरू होता है तो एक ही छत के नीचे मरीजों को सभी डॉक्टर्स की सुविधा मिल जाएगी। इस अस्पताल में गांव व शहर से आने वाले मरीजों का भार रहता है। यहां से न्यूरोलॉजी व गेस्ट्रोएंटोलॉजी जैसी कई सुपरस्पेशलिएटी यूनिट एमडीएम अस्पताल में चली गई है। यहां इन दोनों विभागों की सुपरस्पेशलिएटी सुविधा होने तक आउटडोर 1500 का रहता था। वर्तमान में आउटडोर लगभग 750 पर आ गया है। अस्पताल की रियासतकालीन इमारत में आए दिन प्लास्टर गिरने की समस्या रहती है।
आगे बढ़ा और अजीत कॉलोनी क्षेत्र में पहुंचा। यहां गत पांच वर्षों में बारिश के दिनों में जलभराव की परेशानी रही। पॉश इलाके में शुमार इस कॉलोनी में बारिश के दिनों में लोगों के घरों में पानी भर जाता है। इस समस्या के निवारण के लिए कॉलोनीवासियों ने अपने खर्चे पर अजीत कॉलोनी प्रवेश द्वार की सडक़ ऊंची कर दी। जबकि पिछले चुनाव में इस क्षेत्र में भाजपा को अच्छी बढ़त मिली थी। इस इलाके में सडक़ें भी क्षतिग्रस्त हैं। यहां से परकोटे में दाखिल हुआ तो ट्रैफिक की समस्या से दो-चार होना पड़ा। यहां बेतरतीब ट्रैफिक के अलावा अतिक्रमण भी नासूर बना हुआ है। जिसको लेकर भी कोई उल्लेखनीय काम नहीं हुआ। इन क्षेत्रों में आपात स्थिति में एंबुलेंस व फायर ब्रिगेड का घुसना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। परकोटे के कई इलाकों में भू-जल की समस्या होने से दुकानों के अंडरग्राउंड में जल भराव की भी बड़ी समस्या है।
क्षेत्र में ये काम हुए
स्कूलों में कक्षा-कक्ष और टॉयलेट बनवाए गए हैं। रामेश्वर नगर से पाली रोड तक सीसी सडक़ बनवाई। सीवर लाइन ठीक करवाने के काम भी करवाए। 250 हैंड पंप खुदवाए। बावडिय़ां सुधरवाई गई। एमडीएम अस्पताल में लैब और उम्मेद अस्पताल में ओटी बनवाया। एमजीएच में लैब के लिए कक्ष बनवाया। एक्सरे मशीनें व डीप फ्रिज भी इन अस्पतालों में लगवाए गए। इनके अलावा ऐसा कोई बड़ा काम नहीं हुआ, जिसे याद किया जा सके।
महिलाओं और युवाओं के लिए कुछ नहीं विधानसभा क्षेत्र में महिलाओं व युवाओं के लिए कोई विशेष कार्य नहीं हुआ। ये वर्ग पूर्व की भांति उपेक्षित रहा है। शहर में अपराध बढ़े हैं। महिला सुरक्षा के मुद्दे पर भी विशेष कार्य नहीं हुआ।
क्षेत्र में रहे, जुड़ाव कम
शहर विधायक कैलाश भंसाली दो बार विधायक रहे, लेकिन क्षेत्र में रहने के बावजूद आमजन से जुड़ाव कम ही देखने को मिला। ज्यादातर पार्टी के कार्यक्रमों में ही नजर आए। कई मर्तबा अपनी बयानबाजी से वे आमजन के समक्ष घिर गए। वहीं सुपारस भंडारी गत पांच सालों में पार्टी में सक्रिय रहे, लेकिन ग्राउंड स्तर पर वे भी कम नजर आए।
क्षेत्र की प्रमुख समस्याएं – कई इलाकों में पानी कम दबाव से आता है, कई बार लोगों ने प्रदर्शन किया।
– बारिश के दिनों में सीवरेज का ओवरफ्लो एक सप्ताह तक ठीक नहीं होता। कई जगहों पर बिना बारिश भी सीवरेज की समस्या रहती है।
– बारिश के दिनों में पानी की निकासी का पर्याप्त इंतजाम नहीं है।
– ज्यादातर क्षेत्रों में पार्र्किंग की समस्या है।
– दुकानों के अतिक्रमण के कारण सडक़ें संकरी हो रही हंै।
पिछले चुनाव का परिणाम
प्रत्याशी – पार्टी – मत – मत प्रतिशत
कैलाश भंसाली – भाजपा – 60928 – 51.81
सुपारस भंडारी – कांग्रेस – 46418 – 39.47
जीत का अंतर – 14510
नोटा – 1886
विधायक मद की स्थिति
वर्ष — वित्तीय स्वीकृति — कार्य संख्या
2014-15 – 93.503 – 42
2015-16 – 219.750 – 84
2016-17 – 119.524 – 25
2017-18 – 338.827 – 61
2018-19 – 293.175 – 64
स्वीकृतियां शेष रहीं- 205.575