जलदाय मंत्री डॉ. बी.डी. कल्ला के निर्देश पर प्रदेश में ज्यादा लोड वाले पम्पिंग स्टेशनों के विद्युत उपभोग के पैटर्न का विश्लेषण किया गया। सामने आया कि कई जगह पानी की मोटर की विद्युत कंपनियों को दी जाने वाली ‘कॉन्ट्रैक्ट डिमांड’ बिजली के वास्तविक उपभोग की तुलना से अधिक है। इस कारण विद्युत कंपनियों के नियमों के अनुरूप जलदाय विभाग को अतिरिक्त राजस्व का भुगतान करना पड़ता है। इसके अलावा कई पम्पिंग स्टेशन पर ‘हायर पावर फैक्टर’ मैंटेन किया जाना जरूरी है। इन पहलुओं पर फोकस करते हुए विभाग में ‘एनर्जी प्लानिंग एंड कंजर्वेशन’ की पहल की गई है।
‘पावर फैक्टर इंसेंटिव’ कार्ययोजना
इंजीनियर्स को पम्प हाऊस के विद्युत कनेक्शन के लिए ‘कॉन्ट्रेक्ट डिमांड’ उस क्षमता तक की ही लेने को कहा गया है, जितनी खपत होती है। इससे बिजली की वास्तविक खपत उसकी (कॉन्ट्रेक्ट डिमांड) की तुलना में 100 प्रतिशत से 75 प्रतिशत के बीच रहे। ऐसा करने पर करोड़ों के राजस्व तथा बिजली की भी बचत हो सकेगी।
इंजीनियर्स को ‘मोटिवेट’ करेंगे
पम्पिंग स्टेशन पर 200 केवी और इससे ऊपर की क्षमता के कनेक्शन के बारे में फील्ड इंजीनियर्स को अगस्त 2018 से जुलाई 2019 तक का डेटा चीफ इंजीनियर (स्पेशल प्रोजेक्ट) को भिजवाने के निर्देश दिए गए हैं। इसके विश्लेषण के बाद सभी पहलुओं को ध्यान रखते हुए ‘कॉन्ट्रेक्ट डिमांड’ में कमी और ‘पावर फैक्टर’ में सुधार के लिए टाइमलाइन के आधार पर कार्य किया जाएगा। इसके लिए अभियंताओं को मोटिवेट किया जा रहा है।
राज्य स्तर पर मांगी है जानकारी
पॉजिटिव इंजीनियरिंग के पीछे मुख्य उद्देश्य पम्प हाउस के पुराने सिस्टम को सुधारना है। बिजली खपत को कम करने की कवायद है। राज्य स्तर पर जानकारी मांगी गई है।
– नीरज माथुर, अतिरिक्त मुख्य अभियंता, पीएचईडी जोधपुर