बासनी क्षेत्र में नहीं है सार्वजनिक पुस्तकालय
बासनी के आसपास बड़ा सरकारी व सार्वजनिक पुस्तकालय नहीं होने से लोगों को निजी पुस्तकालयों का रुख करना पड़ रहा है। इसके साथ ही शहर में चुनिंदा सार्वजनिक पुस्तकालयों में उमड़ रही भीड़ के कारण छात्रों को पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती है। ऐसे में युवाओं के पास निजी पुस्तकालयों का ही विकल्प रहता है। इन निजी पुस्तकालयों में बैठने व पढऩे का उचित माहौल तो मिल जाता है लेकिन यहां पुस्तकों की पर्याप्त संख्या नहीं मिल पाती है। लेकिन सामान्य प्रतियोगी सहित अन्य परीक्षाओं की तैयारी करने वाले ज्यादातर युवाओं के लिए ज्यादा पुस्तकों की जरुरत नहीं रहती है। ऐसे में इन युवाओं को महज पढाई के लिहाज से उचित वातावरण की जरुरत पड़ती है जो इन निजी पुस्तकालयों में सहजता से मिल जाता है।
निजी पुस्तकालयों के प्रति युवाओं का यह रुझान पिछले दो-तीन सालों में ही बढ़ा है। जानकार बताते हैं कि पहले यह चलन मेट्रो शहरों में ज्यादा था। दिल्ली, जयपुर व कोटा जैसे शहरों से यह चलन जोधपुर सहित अन्य छोटे शहरों में आया है। मेट्रो शहरों की तुलना में अभी तक यहां लेपटॉप, ऑनलाइन तैयारी, टेस्ट, ई-पुस्तकालय, सेमिनार प्रस्तुतिकरण सहित आधुनिक सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। फिर भी घरों में पढ़ाई का उचित माहौल नहीं मिलने सहित घरेलू कामकाज में व्यस्तता के कारण छात्र पढाई के लिए समय नहीं निकाल पाते हंै। ऐसे में निजी पुस्तकालयों में अच्छा माहौल मिलने के कारण इनके प्रति रुझान बढ़ा है।
इन निजी पुस्तकालयों में उपलब्ध जगह, संसाधन, सीट सहित फर्नीचर के आधार पर छात्रों के बैठने की व्यवस्था रहती है। आमतौर पर ये पुस्तकालय तीन पारियों में चलाए जाते हैं। प्रत्येक पारी लगभग 6 घंटों की होती है। पहली पारी सुबह 6 बजे से दिन के 12 बजे तक, दूसरी पारी 12 से शाम 6 बजे और तीसरी पारी शाम 6 बजे से रात के 12 बजे तक चलती है। इसमें लगने वाली फीस सहित अन्य बैठक व्यवस्था पुस्तकालय में उपलब्ध सुविधाओं पर निर्भर करती है। निजी पुस्तकालयों में एक पारी की औसतन फीस करीब पांच सौ से सात सौ रुपए महीने के आसपास है। वहीं अधिक पारियों में बैठने पर फीस में रियायत दी जा रही है।
बासनी के आसपास बड़ा सरकारी व सार्वजनिक पुस्तकालय नहीं होने से लोगों को निजी पुस्तकालयों का रुख करना पड़ रहा है। इसके साथ ही शहर में चुनिंदा सार्वजनिक पुस्तकालयों में उमड़ रही भीड़ के कारण छात्रों को पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती है। ऐसे में युवाओं के पास निजी पुस्तकालयों का ही विकल्प रहता है। इन निजी पुस्तकालयों में बैठने व पढऩे का उचित माहौल तो मिल जाता है लेकिन यहां पुस्तकों की पर्याप्त संख्या नहीं मिल पाती है। लेकिन सामान्य प्रतियोगी सहित अन्य परीक्षाओं की तैयारी करने वाले ज्यादातर युवाओं के लिए ज्यादा पुस्तकों की जरुरत नहीं रहती है। ऐसे में इन युवाओं को महज पढाई के लिहाज से उचित वातावरण की जरुरत पड़ती है जो इन निजी पुस्तकालयों में सहजता से मिल जाता है।
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पिछले कुछ सालों में ही बढ़ा है रुझाननिजी पुस्तकालयों के प्रति युवाओं का यह रुझान पिछले दो-तीन सालों में ही बढ़ा है। जानकार बताते हैं कि पहले यह चलन मेट्रो शहरों में ज्यादा था। दिल्ली, जयपुर व कोटा जैसे शहरों से यह चलन जोधपुर सहित अन्य छोटे शहरों में आया है। मेट्रो शहरों की तुलना में अभी तक यहां लेपटॉप, ऑनलाइन तैयारी, टेस्ट, ई-पुस्तकालय, सेमिनार प्रस्तुतिकरण सहित आधुनिक सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। फिर भी घरों में पढ़ाई का उचित माहौल नहीं मिलने सहित घरेलू कामकाज में व्यस्तता के कारण छात्र पढाई के लिए समय नहीं निकाल पाते हंै। ऐसे में निजी पुस्तकालयों में अच्छा माहौल मिलने के कारण इनके प्रति रुझान बढ़ा है।
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दिन भर उमड़ती है भीड़इन निजी पुस्तकालयों में उपलब्ध जगह, संसाधन, सीट सहित फर्नीचर के आधार पर छात्रों के बैठने की व्यवस्था रहती है। आमतौर पर ये पुस्तकालय तीन पारियों में चलाए जाते हैं। प्रत्येक पारी लगभग 6 घंटों की होती है। पहली पारी सुबह 6 बजे से दिन के 12 बजे तक, दूसरी पारी 12 से शाम 6 बजे और तीसरी पारी शाम 6 बजे से रात के 12 बजे तक चलती है। इसमें लगने वाली फीस सहित अन्य बैठक व्यवस्था पुस्तकालय में उपलब्ध सुविधाओं पर निर्भर करती है। निजी पुस्तकालयों में एक पारी की औसतन फीस करीब पांच सौ से सात सौ रुपए महीने के आसपास है। वहीं अधिक पारियों में बैठने पर फीस में रियायत दी जा रही है।
ये मिल रही सुविधाएं
– ठंडा व साफ पानी
– उचित प्रकाश व्यवस्था
– बैठने के लिए आरामदायक कुर्सी
– कैबिन व्यवस्था
– आपसी वार्तालाप के लिए कक्ष
– साप्ताहिक परामर्श कक्षाएं
– चाय व अल्पाहार
– पुस्तकें व अखबार
– गर्मी में वातानुकूलित कमरे
– ठंडा व साफ पानी
– उचित प्रकाश व्यवस्था
– बैठने के लिए आरामदायक कुर्सी
– कैबिन व्यवस्था
– आपसी वार्तालाप के लिए कक्ष
– साप्ताहिक परामर्श कक्षाएं
– चाय व अल्पाहार
– पुस्तकें व अखबार
– गर्मी में वातानुकूलित कमरे
इनका कहना है-
मेट्रो शहरों की तरह जोधपुर में भी निजी पुस्तकालयों के प्रति युवाओं का रुझान बढ़ा है। युवाओं को घर में पढ़ाई का उचित माहौल नहीं मिल पाता है। निजी पुस्तकालयों में सुविधाएं मिलने से युवा इस ओर आकृष्ट होते हंै।
– कन्हैयालाल पालीवाल।
मेट्रो शहरों की तरह जोधपुर में भी निजी पुस्तकालयों के प्रति युवाओं का रुझान बढ़ा है। युवाओं को घर में पढ़ाई का उचित माहौल नहीं मिल पाता है। निजी पुस्तकालयों में सुविधाएं मिलने से युवा इस ओर आकृष्ट होते हंै।
– कन्हैयालाल पालीवाल।
क्षेत्र में कोई बड़ा सार्वजनिक या सरकारी पुस्तकालय नहीं है। शहर के सरकारी पुस्तकालयों में भी सीमित जगह होने के कारण कई बार जगह नहीं मिल पाती है। इसके कारण निजी पुस्तकालयों का रुख करना पड़ता है।
– सीमाकंवर शेखावत।
– सीमाकंवर शेखावत।
घर पर कई बार कामकाज सहित अन्य कारणों से पढ़ाई में व्यवधान होता है। ऐसे में निजी पुस्तकालयों में पढ़ाई के लिहाज से अच्छा माहौल मिल जाता है। यहां साथियों के साथ विभिन्न मुद्दों पर आपसी बातचीत भी हो जाती है।
– कृष्ण कुमार यादव।
– कृष्ण कुमार यादव।
आजकल क्षेत्र में कई जगह निजी पुस्तकालय खुल गए हैं। यहां उपलब्ध संसाधनों के आधार पर ही बैठक सहित फीस आदि की व्यवस्था रहती है। आमतौर पर इन निजी पुस्तकालयों में छात्रों को शांत व उचित माहौल मिल जाता है।
– परमेश्वर पालीवाल।
– परमेश्वर पालीवाल।
इन निजी पुस्तकालयों का चलन पिछले कुछ सालों में ही बढ़ा है। सेल्फ स्टडी करने वालों के लिए यह अच्छा विकल्प है। इसके साथ ही कई बार कोचिंग के बाद भी छात्र रिवीजन आदि के लिए इन पुस्तकालयों में बैठकर पढ़ाई करते हंै।
– सीमा विश्नोई।
– सीमा विश्नोई।
घरेलू कामकाज आदि के कारण कई बार घर पर पढ़ते समय व्यवधान आ जाता है। वहीं निजी पुस्तकालयों की पारी का समय निश्चित होने के कारण यहां समय सारणी के आधार पर पढ़ सकते हैं। शांत क्षेत्र होने से एकाग्रता भी बनी रहती है।
– दुर्गसिंह राठौड़।
– दुर्गसिंह राठौड़।