आपने महसूस किया होगा कि अलग-अलग जगहों पर गोलगप्पों का स्वाद अलग होता है। जिसका कारण है गोलगप्पे बनाने में प्रयुक्त होने वाले मसाले कई बार निम्न स्तर के होते हैं। मसलन खराब आलू का प्रयोग, सड़े-गले प्याज, मिर्च मसाले आदि। कुछ विक्रेता ग्राहकों की सेहत को नजरअंदाज करते हुए कम गुणवत्ता वाली खाद्य सामग्री का प्रयोग करते हैं। इससे लोगों के पाचन तंत्र में समस्या हो जाती है।
अशुद्ध पानी
गोलगप्पे के साथ प्रयोग होने वाला पानी भी कई बार प्रमाणिकता पर खरा नहीं उतरता है। विक्रेताओं की ओर से अधिक से अधिक पैसा कमाने के लालच में ग्राहकों के हितों को दरकिनार कर अशुद्ध पानी को काम में लिया जाता है। पानी में स्वाद बढ़ाने के नाम पर साइट्रिक एसिड भी अधिक मात्रा में डाला जाता है, जिसके कई नुकसान भी हैं।
हाथों में नहीं पहनते दस्ताने
गोलगप्पे विक्रेता विक्रय करते समय हाथों में दस्ताने भी नहीं पहनते हैं। इतना हीं नहीं कई बार झूठी प्लेटों को धोकर उन्हीं हाथों से ग्राहकों को खिलाया जाता है। साथ ही साफ-सफाई नहीं होने व खुले में खाद्य सामग्री होने से कीटाणुओं व धूल मिट्टी के कण भी खाद्य सामग्री में सम्मिलत हो जाते हैं।
गोलगप्पा बेचने वाले विक्रेता स्वच्छ भारत अभियान को चुनौती देते हुए स्वच्छता की परवाह किए बिना प्लेटों व दूनों के लिए कचरा पात्र भी नहीं रखते हैं। इसके अभाव में लोग इधर-उधर प्लेटों को फेंक देते हैं। बिखरी प्लेटों पर आवारा पशुओं का जमावड़ा लगा रहता है। कचरा खाने से पशु भी बीमार हो जाते हैं।
भले ही गोलगप्पे विक्रेताओं की ओर से नियमों को अनदेखा कर खाद्य सामग्री का विक्रय किया जाता हो, लेकिन नगर निगम व खाद्य विभाग इन पर शायद ही कभी कार्रवाई करता है। कई विक्रेताओं के पास खाद्य प्रमाण पत्र भी नहीं होता है।
पेट में जलन
गैस बनना
आंतों में तकलीफ
पाचन तंत्र पर विपरीत प्रभाव
बार-बार खाने से भूख न लगना