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टैगोर जयंती : टैगोर को जोधपुर ने यूं याद किया

locationजोधपुरPublished: May 08, 2018 10:23:52 pm

Submitted by:

M I Zahir

रविंद्रनाथ टैगोर के साहित्य के जोधपुर में कई कद्रदान हैं। टैगोर जयंती पर जोधपुर में कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें श्रद्धा से याद किया गया।

Rabindranath Tagore

Rabindranath Tagore

जोधपुर . देश को पहला नोबल पुरस्कार दिलवाने वाले अंग्रेजी व बांग्ला के प्रसिद्ध भारतीय साहित्यकार रविंद्रनाथ टैगोर के साहित्य के जोधपुर में कई कद्रदान हैं। यह शहर इस बात का समय-समय पर साक्ष्य देता रहा है। इस शहर के साहित्यकारों, रंगकर्मियों, अकादमिकों और साहित्यप्रेमियों की गतिविधियां इस बात की मिसाल हैं। टैगोर जयंती पर जोधपुर में कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें श्रद्धा से याद किया गया।
सुमेर लाइब्रेरी में कार्यक्रम
विश्वविख्यात कवि रविंद्रनाथ टैगोर की जयंती पर राजकीय सुमेर सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय के नगर निगम स्थित पुराने भवन में कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस मौके राजस्थान लोक सेवा आयोग के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. एस एस टाक ने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि टैगोर भारतीय सांस्कृतिक चेतना में जान फूंकने वाले युग दृष्टा थे। उन्होंने कहा कि टैगोर ने बांग्ला साहित्य और संगीत को नई दिशा दी। टाक ने कहा कि उन्होंने भारतीय सभ्यता की अच्छाइयां यहां लाने में प्रभावशाली भूमिका निभाई।
टैगोर बचपन से कविता लिख रहे थे
मुख्य अतिथि पाठक मंच के अध्यक्ष डॉ. देवीलाल पंवार ने कहा कि जब टैगोर बाल्यावस्था में थे, उन्होंने तभी से कविता लिखना शुरू कर दिया था। उन्होंने प्रथम कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी और उनकी 16 साल की उम्र्र में भानुसिन्हा नाम से कविताएं प्रकाशित भी हो गई थीं। वह महान उपन्यासकार, नाटककार और कहानी लेखक ही नहीं, अपितु एक बड़े संगीतज्ञ, चित्रकार, तत्वज्ञानी, पत्रकार, अध्यापक और अभिनय कला में प्रवीण थे। आनंद गौड़ ने कहा कि वह राष्ट्रवादी थे और उन्होंने ब्रिटिश राज की भत्र्सना करते हुए आजादी की मांग की।
जन गण मन की रचना की
प्रकाश बोराणा ने कहा कि टैगोर ने न केवल भारत के राष्ट्रगान जन गण मन की रचना की, बल्कि बांग्लादेश का राष्ट्रीय ज्ञान आमार सोनार बांग्ला की भी रचना की। जगदम्बासिंह ने कहा कि जलियांवाला बाग कांड के बाद उन्हांेंने अंग्रेजों की दी गई नाइटहुड की उपाधि लौटा दी थी। पुस्तकालयध्यक्ष मुरलीधर शर्मा ने कहा कि टैगोर को उनके कुछ कार्यों के अनुवाद और गीतांजलि के आधार पर साहित्य का नोबल पुरस्कार दिया गया थ। अंत में संतोष पंवार ने आभार व्यक्त किया।
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