न्यायाधीश पीके लोहरा ने मलखान सिंह की अपील खारिज करते हुए यह आदेश दिया। अपील के जरिए ट्रायल कोर्ट के 6 जुलाई को अंतरिम जमानत का प्रार्थना पत्र खारिज करने के आदेश को चुनौती दी गई थी। अपीलार्थी के अधिवक्ता हेमंत नाहटा ने सुप्रीम कोर्ट सहित विभिन्न न्यायालयों के निर्णयों का हवाला देकर कोर्ट से कहा कि जेल में बंद व्यक्ति को भी चिकित्सकीय सुविधा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार है, उसे इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। यदि इस अधिकार से वंचित किया गया तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार का उल्लंघन होगा। यह भी कहा कि हर व्यक्ति को अपनी पसंद के अस्पताल में उपयुक्त इलाज कराने का अधिकार है, सरकारी अस्पताल में इलाज कराने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कोर्ट को बताया कि अपीलार्थी को पथरी है। इसके अलावा पूर्व में करवाए गए हर्निया के ऑपरेशन के बाद भी दर्द कम नहीं हुआ है। उसे अपने खर्च पर सर्जरी करवाने के लिए 12 सप्ताह की अंतरिम जमानत दी जाए। सीबीआई के विशिष्ट लोक अभियोजक पन्ने सिंह रातड़ी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि पूर्व में भी अपीलार्थी ने पुलिस कस्टडी में हर्निया का ऑपरेशन करवाया था। इसके लिए अंतरिम जमानत की आवश्यकता नहीं है।