न्यायाधीश संदीप मेहता व न्यायाधीश मनोज कुमार गर्ग की खंडपीठ में एक अधिवक्ता ने एक फौजदारी रेफरेंस को लेकर खंडपीठ के निर्णय की समीक्षा का प्रार्थना पत्र पेश किया था। अधिवक्ता का कहना था कि रेफरेंस को निर्णीत करते समय इसकी सूचना समाचार पत्रों में प्रकाशित की जानी चाहिए। साथ ही Bar Associations तथा न्यायिक अधिकारियों को भी सूचित किया जाना चाहिए था, ताकि वे अपने विचार प्रकट कर सकें। कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता अधिवक्ता तीन दिसंबर, 2021 के निर्णय में अधिवक्ताओं की सूची में अपना नाम नहीं होने से नाराज प्रतीत होता है। इसे लेकर अधिवक्ता ने कोर्ट पर चैम्बर में निर्णय करने सहित अन्य आशंकाएं भी प्रकट की। खंडपीठ ने आदेश के साथ याचिकाकर्ता के प्रार्थना पत्र को भी संलग्र करते हुए कहा कि उसमें पाई गई व्याकरण और भाषा की त्रुटियां हाईकोर्ट में पैरोकारी करने वाले वकील से अपेक्षित नहीं समझी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 395 के तहत सत्र न्यायाधीश, पाली ने फौजदारी रेफरेंस भेजा था। इस प्रावधान में ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है, जो रेफरेंस का उत्तर देने से पहले बार के सदस्यों के विचार जानने को अनिवार्य करे। ऐसा करना विशुद्ध रूप से कोर्ट का विवेक है।
आशंकाएं कोर्ट की गरिमा को ठेस पंहुचाने वाली खंडपीठ ने कहा-हमारा दृढ़ मत है कि याचिकाकर्ता के पास प्रक्रिया की शर्तों और रेफरेंस को सुनने और तय करने के तरीके को निर्धारित करने का कोई अधिकार नहीं है। याची की आशंकाएं कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंचाने जैसी और निंदनीय हैं। बार कौंसिल से नामांकित होने के नाते एक अधिवक्ता को कोर्ट के एक अधिकारी के रूप में कार्य करने की आवश्यकता है, लेकिन ऐसा लगता है कि याची कोर्ट का बहुत कम सम्मान करता है और न्याय प्रशासन की पूरी तरह से उपेक्षा करता है।
तीस दिन में जमा करवानी होगी कॉस्ट कोर्ट ने याची के प्रार्थना पत्र को पचास हजार रुपए की कॉस्ट के साथ खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता को यह कॉस्ट तीस दिन की अवधि में राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा करवानी होगी। इसमें विफल रहने पर उसे राज्य की किसी भी कोर्ट में वकालतनामा दाखिल करने और वादियों की ओर से पेश होने और बहस करने से रोक दिया जाएगा।