भाषा-भूषण रीतिकालीन साहित्य का उत्कर्ष ग्रन्थ है जो रीति और अलंकार का प्रतीक है। इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विषेषता यह है कि इसमें लक्ष्य और लक्षण की एकरूपता का पूर्ण ध्यान रखा गया है। ग्रंथ में उन्होंने अवतारवाद को भी बड़े अनूठे ढंग से प्रस्तुत किया है। ग्रंथ में बताया गया है कि भगवान श्याम के मन से मिलने पर प्रेम का विकास होता है। ग्रंथ में भक्ति भावना के साथ-साथ नायक-नायिका भेद तथा विविध अलंकारों का भी निरूपण हुआ है। इसमें दोहों की संख्या दो सौ बारह है, जिनमें 166 अलंकार विषयक हैं। शेष शृंगार वर्णन से जुड़े हुए हैं। साहित्यानुरागी महाराजा जसवंतसिंह के आश्रित विद्वानों में काव्यकार दलपतकवि, सुरति मिश्र, नरहरिदास, नवीन कवि बनारसीदास आदि प्रसिद्ध हैं।
साहित्यशास्त्र के ज्ञाता और नीति निपुण
शाहजहां के भरे दरबार में कटार निकालने वाले नागौर अधिपति अमरसिंह राठौड़ के अनुज और जोधपुर महाराजा गजसिंह (प्रथम ) के द्वितीय पुत्र महाराजा जसवंतसिंह रीतिकाल के आचार्य, भाषाविज्ञ, अलंकार-शास्त्रकार, वेदान्तानुरागी, साहित्य शास्त्र के ज्ञाता होने के साथ-साथ नीति निपुण थे। उनकी कविता में आचार्यत्व की गरिमा, कवित्व की शक्ति, अलंकार-शास्त्र की प्रवीणता, भाषा का वैशिष्ट्य, रस की निष्पति, कला का सौन्दर्य का सुन्दर मिश्रण है।
– विक्रमसिंह भाटी, सहायक निदेशक, चौपासनी शोध संस्थान