…तो ट्रायल 50 साल तक पूरी नहीं
राजस्थान हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि अलग-अलग अदालतों में तो ट्रायल पूरी होने में 50 साल लगेंगे, जबकि इंसान की औसत आयु 70 से 80 वर्ष होती है। याचिकाकर्ता 45 साल का है और 5 साल से जेल में है। ऐसे में एक संवैधानिक अदालत आरोपी को इस तरह जेल में मरने के लिए नहीं छोड़ सकती। कोर्ट में 220 कार्यदिवस होते हैं और याचिकाकर्ता के खिलाफ लंबित मामलों की संख्या 250 से अधिक है। हर एफआईआर के लिए आरोपी को एक थाने से दूसरे में या एक जेल से दूसरी में शिफ्ट करके सुनवाई अलग-अलग की जाए तो पीड़ित और आरोपी दोनों यह महसूस नहीं करेंगे कि उन्हें न्याय मिला है।ऐसे रहेगा सुनवाई का क्षेत्राधिकार
जयपुर सीजेएम: जयपुर, कोटा, अजमेर, सीकर, झुंझुंनू तथा भरतपुर जिलों में दर्ज मामलों को ट्रायल के लिए सीजेएम, जयपुर को भेजने के निर्देश।जोधपुर सीजेएम: श्रीगंगानगर जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, सिरोही, नागौर व जैसलमेर में दर्ज मामले जोधपुर सीजेएम को भेजे जाएंगे।
उदयपुर सीजेएम: उदयपुर, राजसमंद तथा भीलवाड़ा में दर्ज मामलों को उदयपुर सीजेएम को भेजने के निर्देश।
बड्स एट के तहत दर्ज मामले: बड्स एट के तहत राज्य भर में दर्ज मामले ट्रायल के लिए जिला और सत्र न्यायाधीश, जोधपुर को भेजने के निर्देश।