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चीन के वैज्ञानिक ने कुरजां में मंगोलिया से लगाया था सैटेलाइट टैग

locationजोधपुरPublished: Feb 04, 2020 11:05:59 am

Submitted by:

Mahesh Mahesh Soni

पत्रिका न्यूज़ नेटवर्कफलोदी. मेहमान पक्षी कुरजां के शीतकालीन प्रवास स्थल खीचन में 29 जनवरी को सोलर सिस्टम सैटेलाइट व रिगिंग कॉलर के साथ मिले पक्षी की पहचान तीन दिन बाद हो पाई है।

फलोदी. मंगोलिया में टैगिंग के समय का फोटो

फलोदी. मंगोलिया में टैगिंग के समय का फोटो


इस टैग की चीन के वैज्ञानिकों ने पहचान की है तथा ये टैगिंग छ: माह पहले मंगोलिया के ऑनन बाल्ज नेशनल पार्क से की गई थी।

चीन के वैज्ञानिक ने की थी टैगिंग-

पक्षी विशेषज्ञ डॉ. दाऊलाल बोहरा ने बताया कि खीचन में हरे रंग के रिगिंग कॉलर 167 व सोलर सिस्टम सैटेलाइट के साथ नजर आए पक्षी के फोटोग्राफ को कई पक्षी वैज्ञानिकों के साथ साझा किया गया था। जिसमें से अधिकांश के जवाब मिल गए थे तथा इस पक्षी की पहचान नहीं हो पाई थी। इसके बाद 1000 क्रैन प्रोजेक्ट की हैड एलेना इलेशेंको ने पहचान के प्रयास जारी रखे। जिसमें इस पक्षी की चीन के बीजिंग कॉलेज ऑफ नेचुरल कंजर्वेशन (फॉरेस्ट यूनिवर्सिटी ऑफ चीन) में कार्यरत प्रोफेसर गाऊ यामीन ने पहचान करके टैगिंग के फोटोग्राफ साझा किए है। साथ गाऊ यामीन ने इस पक्षी के बारे में जानकारी साझा करने के लिए पक्षी प्रेमियों व विशेषज्ञों का आभार व्यक्त किया है। गाऊ यामीन ने जानकारी साझा करते हुए बताया कि 167 टैग 2 अगस्त 2019 को मंगोलिया के ऑनन बाल्ज नेशनल पार्क से एक कुरजां पर लगाया गया था। इसके साथ ही एक अन्य कुरजां पर 168 टैग भी लगाया गया था। बताया गया कि इस पक्षी ने अब तक करीब 4 हजार किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय कर लिया है। डॉ. बोहरा ने बताया कि रूस स्थित बहुत बड़ी बैकल झील व आस-पास बड़ी संख्या में कुरजां के प्रजनन स्थल है। उन्होंने बताया कि मंगोलिया के इस क्षेत्र से टैगिंग किया गया पक्षी मिलने का यह पहला मामला है।
आवश्यकता है अनुसंधान से संरक्षण की –

डॉ. बोहरा ने बताया कि शीतकालीन प्रवास पर कुरजां के अलावा कई अन्य पक्षी भी जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर सहित प्रदेश के जिलों में आते है। एैसे में इन स्थानों को चिन्हित करके प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के प्रयास किए जाने चाहिए। संरक्षण में विदेशों में किए जा रहे अनुसंधान काफी उपयोगी साबित हो सकते है। जिससे कुरजां व अन्य पक्षियों के प्रवसन व प्रवास स्थलों पर खतरों से बचाया सकता है। साथ ही सैंन्ट्रल एशिया बर्ड माइग्रेशन पाथ में पक्षियों के लिए खतरों को कम किया जा सकता है। (कासं)
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