सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही ‘मळमासÓ समाप्त होने पर गृहप्रवेश, मुंडन संस्कार, यज्ञोपवीत, विवाह आदि शुभ एवं मांगलिक कार्यों का शुभारंभ हो गया। तिल तिड़क्या… सी भिड़क्या
ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति से सूर्य का तेज तिल तिल बढऩे से सर्दी का असर कम होने लगता है। सूर्य के उत्तरायण में आने के बाद दिन की अवधि बढऩी शुरू हो जाती है। सर्दी के डर की मानसिकता को दूर करने के लिए मकर संक्रांति के दिन मारवाड़ में तिल तिड़क्या… सी (सर्दी ) भिड़क्या जैसी कहावत प्रचलित है।
मकर संक्रांति को सूर्य उत्तरायण का होना शास्त्रों में बेहद शुभ और देवताओं का समय बताया गया है। ज्योतिष डा. अनीष व्यास ने बताया कि महाभारत काल में गंगा पुत्र भीष्म ने छह माह तक बाणों की शैय्या पर लेटकर सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था और मकर संक्रांति के दिन अपने प्राण त्यागे थे। मकर संक्रांति का पर्व जीवन में बदलाव का पर्व है । संक्रांति पर्व जीवन में नवचेतना की ओर बढऩे का संदेश भी देता है।
मकर संक्रांति को महिलाओं ने सामथ्र्यनुसार तेरह अलग-अलग तरह की वस्तुएं ‘तेरूंडाÓ के रूप में अपनी परिचित व रिश्तेदार महिलाओं को भेंट किए। जोधपुर में विवाहित पुत्रियों को तिल से बने व्यंजन व घेवर-फीणी भेजने और सगाई हो चुकी युवतियों के उनके ससुराल पक्ष की ओर से तिल व गुड़ से बने व्यंजन भेजने की परम्परा निभाई गई। घरों में दाल के पकौड़े- गुळगुले और बाजरे का खीच बनाकर सेवन किया गया।
रातानाडा स्थित अय्यप्पा मंदिर में शुक्रवार को मकर विलक्कू महोत्सव कोविड गाइड लाइन के साथ मनाया गया। शाम को दीपाराधना व अन्य मकर संक्रांति धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान केरलवासियों ने भाग लिया। अय्यप्पा सेवा संघम के सचिव सतीश नायर ने बताया कि शाम को भजन संध्या कार्यक्रम से महोत्सव का समापन किया गया। प्रवासी दक्षिण भारतीयों की ओर से भी मकर संक्रांति पोंगल के रूप में धूमधाम से मनाया गया।