रानी उमराव कंवर ने बनवाया राधे-गोविंद मंदिर तो कहलाया रानीजी का मंदिर, सरदारपुरा में है स्थित उस समय मेवाड़ महाराणा राजसिंह के आग्रह पुजारी श्रीनाथ की मूर्ति सीहाड़ लेकर पहुंचे और वहां मंदिर बनवाया जो आज नाथद्वारा कहलाता है। यदि उस समय जोधपुर महाराजा जसवंत सिंह का दूसरे राज्य में असामायिक निधन नहीं होता तो श्रीनाथजी चौपासनी में विराजित होते। श्रीनाथजी के मूल विग्रह के चौपासनी से चले जाने के बाद दूसरी मूर्ति स्थापित की गई जिनकी वल्लभ सम्प्रदाय की परम्परानुसार सेवा पूजा आज भी जारी है।
राजा को प्रवेश न देने से बालकृष्ण लाल मंदिर की बंद करवा दी थी सामग्री, 254 पुराना है इतिहास चौपासनी मंदिर को श्यामबाबा का मंदिर भी कहा जाता है। श्याम मनोहर का मंदिर महाराजा सरदारसिंहजी के समय संवत् 1957 (1900 ई.) में बनवाया गया था। इससे पूर्व यह मंदिर उम्मेद सागर बांध के पास था। विक्रम संवत 1957 में बांध में पानी अधिक आने से मंदिर डूब गया, तब गुंसाई महाराज मुरलीधर पंचम ठाकुरजी की मूर्ति लेकर अद्र्धरात्रि को पुराने मंदिर से प्रस्थान किया।
मेहरानगढ़ प्राचीर से ‘राजरणछोड़’ की आरती के दर्शन करती थी रानी राजकंवर, प्रसिद्ध है जोधपुर का यह कृष्ण मंदिर क्षेत्र में पुन: नवीन मंदिर के बन जाने के बाद भाद्रपक्ष कृष्ण पक्ष की छठ के दिन मूर्ति को प्रतिष्ठापित किया। श्याम मनोहर मंदिर का पाटोत्सव इसी दिन मनाया जाता है। चौपासनी के श्याम मनोहर मंदिर को परंपरागत रूप से घर अथवा हवेली कहा जाता है। इस हवेली की दिनचर्या पुष्टिमार्ग के अनुयायी एवं भक्त भगवान श्रीकृष्ण को बालरूप एवं किशोर रूप में ही देखते है। मंदिर में आठों प्रहरों के अनुसार श्याम मनोहर की आठ झांकियां सजाई जाती है जो सुबह मंगला से प्रारंभ होकर शृंगार, ग्वाल (पलना), राजभोग, उत्थापन, भोग संध्या, संध्या आरती व रात्रि को शयन आरती से पूरी होती है।
दहेज में मिले थे ‘श्यामजी’, राव गांगा ने मंदिर बनवाया तो बन गए ‘गंगश्यामजी’ चतुर्भुज आकृति के बने मंदिर में जन्माष्टमी त्यौहार पर श्रीकृष्ण को पंचामृत से अभिषेक और दूसरे दिन नंद महोत्सव मनाया जाता है। पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक श्रीमद वल्लभाचार्य महाप्रभु के वंशज गोस्वामी मुकुटराय वर्तमान में मंदिर में सेवारत है। मंदिर में विराजित विग्रह श्रीकृष्ण के सखा सूरदास का सेव्य स्वरूप है जिनकी पहले चन्द्र सरोवर ब्रज में सेवा होती थी।