प्रदेश में सौर ऊर्जा से रोशनी फैलाने की 5 सफल कहानियां
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1. बॉर्डर की चौकियों में सोलर का उजियारा बाड़मेर. रेगिस्तान के बाड़मेर में विद्युतीकरण दुर्गम क्षेत्रों में मुश्किल है। अव्वल तो यहां डिस्कॉम के विद्युत खंभे रेत में खड़े करना परेशानी भरा कार्य है और खड़े कर दिए जाए तो आंधियों में कब गिर जाए पता नहीं। यह समस्या बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) के लिए भी परेशानी खड़ी कर गई। बाखासर से मुनाबाव के बीच में चार बॉर्डर चौकियों पर इस वजह से बिजली नहीं पहुंच पा रही थी। ऐसे में यहां पर बीएसएफ की ओर से सोलर लाइट का प्रस्ताव बीएडीपी ( बॉर्डर एरिया डवलपमेंट प्रोग्राम) के तहत लिया गया। यहां सौर ऊर्जा से अब रोशनी होने लगी है। बीएसएफ की चार चौकियों पर सोलर लाइट से रोशनी होने के साथ ही पंखे भी चलने लगे हैं। जिससे गर्मी में भी जवानों को राहत मिल रही है।
2. रेतीली ढाणियां भी हुई रोशन सीमावर्ती बाड़मेर जिले में हस्तकला का कार्य करने वाली कतवारिनें दूरस्थ ढाणियों में रहती है। इनके यहां पर बिजली का प्रबंध नहीं है। शाम सात बजे बाद इनके पास काम का वक्त तो रात दस-ग्यारह बजे तक रहता था लेकिन इस वक्त रोशनी नहीं। इस समस्या को समझते हुए यहां कार्य कर रही एक स्वयंसेवी संस्थान ने 3000 महिलाओं को सोलर लैम्प उपलब्ध करवाए। चिमनी से कहीं बेहतर रोशनी देने वाले इन लैम्प से अब इन महिलाओं को दो से तीन घंटे अतिरिक्त काम मिलने लगा है। चिमनी की रोशनी की बजाय मिले सोलर लैम्प से अब हस्तशिल्प का काम ही नहीं अपने घरेलू कार्य भी शाम ढलने बाद आसानी से रोशनी में कर रही है।
3. आदिवासियों के घरों में खुशी का उजास बांसवाड़ा. सुदूर आदिवासी गांव में पहाड़ों के बीच बसी बस्तियों में सोलर ने उजियारा किया है। हाथिया दिल्ली गांव के रामचंद्र डामोर ने बताया कि पहली बार गांव में बिजली देख अच्छा लगा। 5 ट्यूबलाइट व पंखा चल जाता है। ग्रामीण महिला हुमा बताती है कि पहले अंधेरे में रोशनी के लिए केरोसिन की जरूरत थी अब सोलर से बल्ब जल जाते हैं। दुर्गम पहाडि़यों में रहने वाले इन परिवारों में रात ढलते ही सब कुछ ठहर सा जाता है। सौर ऊर्जा ने उनके घरों को रोशन कर दिया है। सौभाग्य योजना से इन घरों में उजास हुआ। अब 3768 कच्चे आवासों में सोलर ऊर्जा से उजियारा किया जाएगा। 200 वाट की क्षमता की यूनिट प्रत्येक घर के लिए पृथक रूप से लगाई जा रही है।
4. सोलर पैनल से कर रहे सिंचाई भवानीमंडी (झालावाड़). सोलर प्लांट से कृषि सिंचाई करने वाले भवानीमंडी निवासी किसान धीरज पाटीदार ने बताया कि उसने 2018 में 65 प्रतिशत सब्सिडी पर 1 लाख 32 हजार रुपए में 5 किलो वाट का सोलर पैनल लगवाया था। जिससे वह सुबह 6 से शाम 5 बजे तक अपने खेतो में सिंचाई करता है। पहले बिजली के कनेक्शन पर 3000 रुपए मासिक बिल आता था। लेकिन एक बार सोलर पैनल लगाने के बाद मेंटिनेंस का भी कोई खर्चा नहीं है। माण्डवी रोड स्थित खेत मालिक कंवरलाल ने बताया कि उसने अपने खेत पर पहला सोलर पैनल 2008 में लगवाया था। उस समय विद्युत विभाग द्वारा रात के समय सिंचाई के लिए बिजली की आपूर्ति की जाती थी। जिससे सर्दी-गर्मी में रात के समय ही किसान को सिंचाई करनी पड़ती थी लेकिन सोलर पैनल खरीदने के बाद खेतों में सिंचाई के लिए अब टेंशन नहीं है। दूसरे खेत पर भी सिंचाई के लिए 2012 में एक और सोलर पैनल लगाकर मोटर के माध्यम से सिंचाई की जा रही है। भवानीमंडी निवासी दीपू नाहटा ने बताया कि उसने घर पर 5 किलोवाट का सोलर एनर्जी प्लांट लगा रखा है। जिसमें मीटर लगा हुआ जो प्रोडक्शन व कन्ज्यूम की रीडिंग दर्शाता है। इसे सब्सिडी पर 40 हजार रुपए मे खरीदा।
5. परदेसी महिलाएं रोशन कर रहीं अपना देश किशनगढ़/हरमाड़ा. अजमेर जिले के तिलोनिया स्थित बेयरफुट कॉलेज का सोलर प्रशिक्षण केन्द्र देश-दुनिया में पहचान बना रहा है। यहां देश के विभिन्न प्रांतों और दुनिया के 92 देशों की 1300 महिलाएं सौर उपकरण निर्माण का प्रशिक्षण ले चुकी हैं। वर्ष 2004 में बेयरफुट कॉलेज की शुरुआत की गई। संस्था के सोलर विभाग समन्वयक भगवत नंदन सेवदा ने बताया कि वर्तमान में विश्व के 12 देशों की 57 महिलाएं प्रशिक्षण ले रही है। समाजसेवी डॉ बंकट राय और सूचना के अधिकार की जन्मदात्री डॉ. अरुणा राय बेयरफुट कॉलेज का संचालन कर रहे हैं। बेयरफुट कॉलेज ने इन महिलाओं को सोलर ममास नाम दिया है। तिलोनिया बेयरफुट जैसे केंद्र राजस्थान के अन्य जिलों में भी खोले जाने की जरूरत है।