मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महांति और न्यायाधीश डॉ. पुष्पेंद्रसिंह भाटी की खंडपीठ ने शुक्रवार को पंचायती राज संस्थाओं के परिसीमन को चुनौती देने वाली 85 याचिकाओं को निस्तारित करते हुए कहा कि संवैधानिक प्रावधान और राजस्थान पंचायती राज अधिनियम की धारा 101 की पालना सुनिश्चित करना कोर्ट के लिए बाध्यकारी है। राज्य सरकार को भी इन प्रावधानों का पूर्णतया पालन करना चाहिए। कोर्ट ने पाया कि राज्य सरकार ने परिसीमन की प्रक्रिया पूरी करते हुए 15-16 नवंबर को अंतिम अधिसूचना जारी कर दी थी। लेकिन इसके बाद भी कई अधिसूचनाएं जारी कर परिसीमन प्रक्रिया जारी रखी गई जिसे वैधानिक नहीं माना जा सकता।
राज्य सरकार ने 12 जून को एक अधिसूचना जारी कर ग्राम पंचायतों और पंचायत समितियों के नवसृजन, पुनर्गठन, सीमाओं की सरहदबंदी की प्रक्रिया प्रारंभ की थी। इसके तहत 15 जून से एक महीने की अवधि में जिला कलक्टरों को परिसीमन का प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए गए थे। इसके बाद एक महीने तक आपत्तियां मांगनी थी और अगले दस दिन तक प्रारूप प्रस्तावों पर आपत्तियों की सुनवाई की जानी थी। यह कवायद पूरी होने के अगले दस दिन में जिला कलक्टर को राज्य सरकार के पास उचित सिफारिश भेजनी थी। यह समूची प्रक्रिया कानूनी प्रावधानों के अनुसार समयबद्ध तरीके से ही पूर्ण की जानी थी, क्योंकि अगले साल जनवरी और फरवरी महीने में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव प्रस्तावित हैं। परिसीमन के लिए अधिसूचना में मानक भी तय किए गए थे। राज्य सरकार ने जिला कलक्टर के प्रस्तावों पर विचार करने के लिए छह मंत्रियों की एक हाईपावर कमेटी भी गठित की, जिसके आधार पर 15-16 नवंबर को परिसीमन की अंतिम अधिसूचना जारी की गई। इस अधिसूचना में राज्य में 1257 नई ग्राम पंचायतें गठित की गई थी। अधिकांश याचिकाओं में विभिन्न आधार गिनाते हुए अंतिम अधिसूचना को ही चुनौती दी गई थी, जिसमें दखल देने से कोर्ट ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि संवैधानिक प्रावधानों में परिसीमन के मामलों में कोर्ट का अनापेक्षित हस्तक्षेप निषिद्ध है। इस आधार पर 15-16 नवंबर को जारी अधिसूचना यथावत रखी गई।
इसलिए खारिज हुई बाद की अधिसूचना
इसलिए खारिज हुई बाद की अधिसूचना
सुनवाई के दौरान कोर्ट की जानकारी में आया कि परिसीमन की अंतिम अधिसूचना जारी होने के बाद भी राज्य सरकार ने कुछ और अधिसूचनाएं जारी की हैं। कोर्ट द्वारा चाहे जाने पर सरकार ने अतिरिक्त शपथ पत्र के साथ 23 नवंबर तथा 1-2 दिसंबर को जारी अधिसूचनाएं पेश की। कोर्ट ने अधिसूचनाओं की प्रकृति देखने के बाद 23 नवंबर की अधिसूचना को केवल अंतिम अधिसूचना में रही टंकण त्रुटि का संशोधन पाते हुए अपास्त करने योग्य नहीं माना। जबकि 1 दिसंबर की अधिसूचना को कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग बताते हुए खारिज कर दिया कि एक बार अंतिम अधिसूचना के बाद परिसीमन की प्रक्रिया को जारी रखना विधि सम्मत नहीं कहा जा सकता।