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अक्षय तृतीया 2018 : रोको बाल विवाह, भारत में हर साल 43 प्रतिशत बाल विवाह

locationजोधपुरPublished: Apr 18, 2018 09:40:58 am

Submitted by:

M I Zahir

अक्षय तृतीया को विवाह के लिए शुभ माना जाता है। पुरानी मान्यताओ व परम्पराओं से जुड़ा यह उत्सव देश भर में धूमधाम से मनाया जाएगा।

Aakha teej

stop child marriage

जोधपुर . अक्षय तृतीया को विवाह के लिए शुभ माना जाता है। पुरानी मान्यताओ व परम्पराओं से जुड़ा यह उत्सव देश भर में धूमधाम से मनाया जाएगा। विवाहों के नजरिये से इसे अबूझ सावा माना जाता है, लेकिन इस अनूठी परम्परा के साथ साथ ही एक परंपरागत और गंभीर समस्या बाल विवाह का जोड़ भी वर्षों से जुड़ा है। जो देश और राज्य में एक सामाजिक कुरीति भी है। दुनिया आज तकनीक की नई ऊंचाइयां छू रही है। इसके बावजूद देश, विशेषकर बिहार के बाद राजस्थान बाल विवाहों के मामले में दूसरे स्थान पर है। बाल विवाह रोकने के लिए अब तो कानून भी सख्त बना दिए गए हैं। तमाम प्रबंधों के बाद भी बाल विवाहों के मामलों में अधिकारियों की भूमिका ही संदिग्ध रही है।
नई पीढ़ी समझने लगी बाल विवाह के दुष्परिणाम
नई पीढ़ी अब यह समझने लगी है कि बाल विवाह अभिशाप है। इसे सामाजिक बदलाव की सुखद बयार के रूप में देखना चाहिए। एक ओर जहां माता पिता जहां आज भी परम्पराओं में जकड़े हुए हैं, वहीं युवा यह कुप्रथा समाप्त करने के लिए आगे आ रहे हैं। पिछले कुछ बरसों के दौरान जोधपुर में एेसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जब बालिकाओं ने खुद अपना विवाह रुकवाने के लिए परिवार के खिलाफ साहसी कदम उठाया है।
आईना दिखाती रिपोर्ट गवाह

जिला स्तरीय स्वास्थ्य परीक्षण की रिपोट््र्स के अनुसार देश में हर साल ४३ प्रतिशत बालिकाओं का बाल विवाह होता है। बिहार ६८.२ फीसदी बालिकाओं के बाल विवाह के साथ देश में पहले स्थान पर पर है। राजस्थान ५७.६ फीसदी के साथ दूसरे नम्बर पर है। सबसे खराब स्थिति बंूदी की है, जहां ८५ प्रतिशत बाल विवाह होते हैं। वहीं टोंक ७५ फीसदी, चितौडग़ढ़ ७४ फीसदी, भीलवाड़ा ७३ और अजमेर में ६८ फीसदी बाल विवाह होते हैं। जोधपुर ४८ प्रतिशत के साथ देश में १७ वें स्थान पर है।
आशु के हौसलों से हारा समाज
देखा जाए तो अब कई जगह बालक एवं बालिकाएं बाल विवाह को रूकवाने के लिए खुद ही सजग हो रहे है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण जोधपुर के देचू की आशुकंवर है। आशु को अपना बाल विवाह रुकवाने के लिए राष्ट्रपति के हाथों बहादुरी पुरस्कार मिल चुका है। वर्ष २००८ में छठी कक्षा में पढ़ रही १३ वर्षीय आशु का विवाह तय कर दिया गया था। उसने विरोध किया। बदले में परिवार को २०० जातीय पंचों का विरोध झेलना पड़ा था, लेकिन उसके बुलंद हौसलों के आगे समाज को झुकना पड़ा। आज इसी बालिका ने २१ साल की उम्र में विवाह किया है।
पश्चिमी राजस्थान में लड़के
विभिन्न एनजीओ और यूनीसेफ के आंकड़े बताते हैं कि राज्य, विशेषकर पश्चिमी राजस्थान में २० से २४ वर्ष की युवतियों में से ५८ फीसदी युवतियांें का विवाह १८ वर्ष के पहले हुआ है। गांवों में शादी करने वाली हर चौथी लड़की कम उम्र में ही दुल्हन बन जाती है। यह आकंड़ा करीब 22 फीसदी है। लड़कों की शादी भी 21 साल की कानूनी उम्र से पहले हो रही है। दरअसल कम उम्र में शादी करने वाले लड़कों की संख्या लड़कियों के मुकाबले ज्यादा हैं।
सारे समाज आगे आएं
महिला व बाल विकास विभाग के स्वयं सहायता समूहों का कहना है कि समाज में बालिकाओं को आज भी बोझ समझा जाता है। दहेज से बचाव इसका प्रमुख कारण है। वहीं बड़ी होती लड़की की सुरक्षा को भी बाल विवाह से जोड़ा जाता है। सारे समाजों को बाल विवाह रोकने की जिम्मेदारी उठानी होगी। अगर कानून के साथ टेंट, हलवाई या बैंड वाले बाल विवाह करने वालों को सेवाएं देने से पुरजोर शब्दों में मना कर दें तो बाल विवाह रोकथाम की दिशा में काफी हद तक सफलता मिल सकती है।
बाल विवाह मुक्त करने का दावा
महिला व बाल विकास विभाग के ग्राम संपर्क अभियान चल रहे हैं। अब जागरूकता बढऩे के कारण बाल विवाह चुपके-चुपके ही होते है। महिला व बाल विकास विभाग ने बाल विवाह की कुप्रथा समाप्त करने के लिए ग्राम सम्पर्क अभियान चलाया है, जिसमें अधिकारी और एनजीओ सभी तहसीलों की ग्राम पंचायतों तक पहुंचे और बाल विवाह नहीं करने की शपथ दिलाई। साथ ही ११ से १८ वर्ष की स्कूल नहीं जाने वाली किशोरी बालिकाओं को आंगनवाडिय़ों से जोड़ कर ऐसी कुरीतियां मिटाने का प्रयास करने के फलस्वरूप कई गांवों को बाल विवाह मुक्त करने का दावा किया गया है।
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