डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् राजस्थान आयुर्वेद विवि में भी शिक्षकों की कमी है। सरदार पटेल पुलिस विवि में तो एक तिहाई से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। एम्स में भी चिकित्सक शिक्षकों के पद खाली हैं। जिले के सरकारी कॉलेज की भी यही स्थिति है। भोपालगढ़ स्थित जिले का एकमात्र सरकारी कॉलेज शिक्षकों की कमी की वजह से अपनी मान्यता खो चुका है। शहर के इन बड़े शैक्षिक संस्थानों में यदि शिक्षकों के पद भर दिए जाएं तब ही इनके जोधपुर में अस्तित्व का अर्थ पूरा हो पाएगा।
शोध के लिए बजट नहीं, एमबीएम बंद होने के कगार पर वर्तमान में सरकार की ओर से विश्वविद्यालयों को दिया जाने वाला बजट का करीब 90 फीसदी हिस्सा शैक्षणिक व गैर शैक्षणिक कर्मचारियों की पेंशन में चला जाता है। शोध व अन्य आधारभूत संरचनाओं के लिए बजट ही नहीं है। विवि को खुद पर छोड़ दिया गया है और उनकी कमाई का कोई जरिया नहीं है। एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज की प्रयोगशाला में पुराने उपकरण और लाइब्रेरी में पुस्तकें नहीं होने पर एआइसीटीई ने पिछले दिनों उसका सेशन शून्य कर दिया था। बड़ी मुश्किल से राज्य सरकार ने अण्डरटेकिंग और पांच करोड़ रुपए देकर कॉलेज को बचाया। वर्तमान में एमबीएम के साथ अन्य कॉलेजों व विवि की यही स्थिति है।
केवल एनएलयू में प्रदेश का कोटा, वह भी नहीं मिल रहा
जोधपुर में एम्स, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी और फुटवियर डिजाइन एण्ड डवलपमेंट इंस्टीट्यूट है, लेकिन किसी में भी प्रदेश का कोटा नहीं है। राज्य सरकार ने मार्च 2018 में एनएलयू में 25 फीसदी कोटे को मंजूरी दी थी, लेकिन एनएलयू ने उसे भी लटकाया हुआ है। अन्य संस्थानों में मूल निवासियों को आरक्षण का फायदा नहीं मिल रहा है। ऐसे में जोधपुर में संस्थान होने का स्थानीय छात्र-छात्राओं को कोई खास लाभ प्राप्त नहीं हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सभी संस्थाओं में कुछ कोटा हो तो यहां के विद्यार्थी भी राष्ट्रीय पटल पर उभर सकते हैं।
जोधपुर में बनें शिक्षा संकुल पिछली सरकार के कार्यकाल में शिक्षा विभाग के समस्त कार्यालयों को एक ही छत के नीचे बनाने के आदेश जारी हुए थे। इसमें जोधपुर के जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक, प्रारंभिक, संयुक्त निदेशक, समग्र शिक्षा अभियान स्तर के सभी कार्यालय एक ही छत के नीचे संचालित करने को कहा गया। इसके लिए जोधपुर संभाग संयुक्त निदेशक व जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक कार्यालय को जोड़ शिक्षा संकुल बनाने का प्रस्ताव भेजा गया था। लेकिन फिलहाल ये प्रस्ताव ठंडे बस्ते में है। ऐसा होता है तो जोधपुर में भी शिक्षा संकुल बनकर तैयार होगा। आमजन के शिक्षा विभाग से जुड़े सभी कार्य एक ही छत के नीचे मुहैया होंगे।
दूर हो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का टोटा
शिक्षा विभाग के माध्यमिक सेटअप की स्कूलों में भर्तियों के अभाव में बहुत कम चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी बचे हैं, वहीं प्रारंभिक सेटअप की स्कूलों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी इससे भी कम है। अधिकांश स्कूलें तो बिना चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के चल रही हैं। ऐसे में सरकार ने कई वर्षों से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती तक नहीं निकाली। इस कारण कई स्कूलों में मिड डे मील, अन्नपूर्णा दूध योजना जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी भी शिक्षकों व विद्यार्थियों के भरोसे हैं। कई जगह चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का कार्य भी बच्चे करते हैं।
—-
एक्सपर्ट व्यू बजट तो मिले, कैसे काम चलाएं
प्रदेश के विश्वविद्यालयों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। उनके पास अपने कर्मचारियों को पेंशन देने के लिए पैसे नहीं है। पढ़ाई व शोध कार्यों के लिए बजट तो ऊंट के मुंह में जीरे जितना होता है। इतने इंस्टीट्यूट होने के बावजदू बगैर पैसे और बगैर शिक्षकों से कैसे काम चलाया जाए। सरकार शिक्षकों के सभी पद भरें।
-डॉ. एलएन हर्ष, पूर्व कुलपति, कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर
कई बार उठाया शिक्षा संकुल का मामला शिक्षा संकुल बनाने और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के पद भरने के मामले को कई बार बैठकों में उठाया है। इस बारे में अब लिखित में भी उच्चाधिकारियों को अवगत करवाएंगे।
– प्रेमचंद सांखला, जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक (मुख्यालय)