जोधपुर

पाक विस्थापितों की दीपावली इस बार फीकी

 
 
सरकार के वादे पूरे होने के इंतजार में नागरिकता मिली ना रोजगार
जोधपुर में है करीब 30 हजार विस्थापित

जोधपुरNov 05, 2020 / 10:44 pm

Nandkishor Sharma

जोधपुर के आंगनवा क्षेत्र में एक पहाड़ी पर बसी बस्ती में पाक विस्थापित का घर

नंदकिशोर सारस्वत
जोधपुर. केन्द्र सरकार के वादे के अनुसार जोधपुर में निवासरत करीब 17 हजार से अधिक पाक विस्थापितों को नागरिकता मिलने में देरी से विस्थापितों की दीपावली इस बार फीकी रहेगी। धार्मिक उत्पीडऩ के सताए पाक विस्थापितों को भाजपा के घोषणा पत्र के अनुरूप विकास तथा पुनर्वास प्रबन्ध का इंतजार है। सरकार की ओर से पाक विस्थापतों को विभिन्न सरकारी सुविधाओं के लिए भले ही नोटिफि केशन्स जारी किए हैं, लेकिन धरातल तक पहुंचने में देरी के चलते मूलभूत समस्याओं को झेलना पड़ रहा है। नागरिकता के अभाव में कास्ट बेनिफिट, बीपीएल आदि सरकारी योजनाओं का लाभ, रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा, आवास अन्य सुविधाओं से वंचित होना पड़ रहा है।
सर्द हवा रोकने तक के इंतजाम नहीं
पाक विस्थापित परिवारों की आजीविका का माध्यम खेतों की रखवाली, खनन, भवन निर्माण, ठेलों पर सब्जी बेचना और हस्तशिल्प उद्योग है। पाक विस्थापित का नाम सुनकर कइ जने रोजगार देने से भी कतराते हैं। जोधपुर शहर के चारों छोर में जगह-जगह छितराई करीब 21 से अधिक कच्ची बस्तियों में विस्थापित परिवार रह रहे हैं। जोधपुर के ही आंगणवा क्षेत्र में पथरीली पहाड़ी पर करीब 150 परिवार घासफूस के तिनकों से अपना आशियाना बनाकर रह रहे है। सर्द हवाओं को रोकने के लिए उनके पास कोई इंतजाम तक नहीं है।
फैक्ट फाइल
30 हजार जोधपुर में कुल पाक विस्थापित

17 हजार को नागरिकता इंतजार
8 हजार विस्थापित पुराने नागरिकता देने के नियमानुसार पात्र

9 हजार नए सीएए बिल के आधार पर नागरिकता के पात्र
अधिनियम के लागू होने का इंतजार
भारत सरकार ने 23 दिसम्बर 2016 को योग्य पाक विस्थापितों को नागरिकता देने का अधिकार जिला कलक्टर्स दिए थे लेकिन चार साल में नाम मात्र लोगों को नागिरकता मिली है। इस बीच दिसंबर 2019 में केन्द्र सरकार ने सीएए अधिनियम बनाकर भरोसा दिलाया कि 2014 दिसम्बर से पहले तीन पड़ोस देशों से आने वाले अल्पसंख्यकों को नागरिकता देंगे लेकिन अधिनियम लागू होने का इंतजार है।
ऐसे तो वोट बैंक बनकर रह जाएंगे
केन्द्र व राज्य सरकार का रवैया देखकर विस्थापितों में बहुत मायूसी है। विस्थापित मानसिक रूप से परेशान होने लगे हैं। केन्द्र सरकार ने 19 अगस्त 2016 को विस्थापितों के लिए पॉलीसी जारी की थी जिनमें नागरिकता, वीजा नियमों का सरलीकरण आदि सुविधाएं शामिल थी तो दूसरी ओर राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने भी अपने घोषणा पत्र में विस्थापितों को आजीविका, सर्वांगीण विकास, पुनर्वास का वादा किया था। लेकिन दोनों ही सरकारों की घोषणाएं धरातल तक पहुंचने में देरी के चलते मूलभूत समस्याओं से त्रस्त है। ऐसा लगता है कि विस्थापित कहीं वोट बैंक बनकर ना रह जाए।
-हिन्दूसिंह सोढ़ा, अध्यक्ष, सीमान्त लोक संगठन
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