दिल्ली में सूरवंश के शासनकाल के दौरान बसी इस दिल्ली के अवशेष जोधपुर के पीपाड़ उपखंड के खवासपुरा गांव में हैं, इस गांव का नाम खवासपुरा भी शेरशाह के प्रमुख सेनापति खवास खान के नाम पर पड़ा। पहले इस गांव का नाम जावा खेड़ा था। बांग्लादेश के ढाका विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉ. कालिका कानूनगो ने अपनी पुस्तक शेरशाह सूरी एंड हिज हिस्ट्री में इस दिल्ली का उल्लेख किया था।
जमींदोज हो गया किला शेरशाह सूरी की मौत के बाद उसका सेनापति खवास खान कुछ सैनिकों के साथ वहां से फरार होकर उस जमाने के जावा खेड़ा गांव में आ गया और यहां नए नाम लोड़ी दिल्ली राज्य बसाया। यहां महल और किले का निर्माण करवाकर रहने लगा। जब बाद में सूर वंश के मोहम्मद शाह आदिल को इस दिल्ली की भनक लगी तो उसने खवास खान को पारितोषिक के बहाने बुलाया। वहां खवास खान को मौत के घाट उतार दिया। बाद में पीपाड़ की इस दिल्ली को नेस्तनाबूद करवा दिया।
सद्भावना का केंद्र खवास खान की दरगाह शेरशाह के सेनापति खवास खान की हत्या के बाद उसके समर्थक शव लेकर आए और किले के बाहर दफन कर दरगाह बना दी। कहा जाता हैं कि खवास खान सूफी मत का समर्थक होने के साथ शेख सलीम चिश्ती का गुरु भाई भी था। यह दरगाह क्षेत्र में सदभावना की प्रतीक के रूप में पहचान रखती हैं। उर्स की चादर जाखड़ समाज के लोग सबसे पहले चढ़ाते हैं।
...तो खवासपुरा की दिल्ली होती सत्ता का केंद्र सूरवंश इतिहास के जानकार कमेरा भारत फाउंडेशन के अध्यक्ष नासिर खिलजी के अनुसार खवास खान इस स्थल से मारवाड़, गुजरात के साथ सिंध प्रांत पर नजर रखकर सत्ता का केन्द्र बनाने की मंशा रखता था। मोहम्मद शाह आदिल को इसकी सूचना मिलने पर उसने खवास खान के इरादों पर पानी फेर दिया।
ढाका के इतिहासकार डॉ . कानूनगो ने शेरशाह के साम्राज्य पर रिसर्च के दौरान अपनी पुस्तक में मारवाड़ के इतिहास को गहराई से रखा, जिसमें यहां का जिक्र छोटी दिल्ली के रूप में है। बुजुर्ग ग्रामीण बुद्धराज वैष्णव का कहना हैं कि बचपन में बड़े-बुजुर्गोंं से हथाइयों में लोड़ी दिल्ली की चर्चा सुनी थी।