कर्नल राठौड़ ने कहा कि कुछ बल रक्षा मंत्रालय के अधीन हैं और कुछ गृह मंत्रालय के अधीन हैं। रक्षा मंत्रालय गृह मंत्रालय के काम करने के तरीके और माहौल में पहले अंतर था, लेकिन यह अंतर अब कम हो रहा है। हालांकि दोनों के नियम अलग-अलग हैं। सीएपीएफ, बीएएसएफ व सीआरपीएफ सभी को उनकेउपयोगिता के अनुरूप काम में लिया जा रहा है। कई बलों को इंस्टीट्यूशनल इलाकों में भी काम में लिया जा रहा है। जैसे नक्सलवाद के समय सीआरपीएफ का उपयोग किया गया।
उन्होंने कहा कि रूल्स में यह प्रावधान है कि यह देखना होगा कि बैटल कैजुअल्टी या एक्टिव ड्यूटी कैजुअल्टी है। ऑफ ड्यूटी डैथ है या ऑन ड्यूटी डैथ। युद्ध के समय बैटल कैजुअल्टी का पैकेज अलग रहता है। किसी की छुट्टी के दौरान डैथ होती है तो किसी की एक्सीडेंटल डैथ हो जाती है। इन सभी में विभाग परिस्थितियों के अनुसार राहत देता है।
कर्नल राठौड़ ने कहा कि किसी भी सिपाही, पुलिस या सेना की सेवा की भरपाई पैसे से नहीं की जा सकती। इमोशन और पैसे का गैप तो काफी समय तक रहेगा। उन्होंने उदाहरण दिया कि अमरीकन फोर्सेज के हवलदार को एक महीने के चार हजार डॉलर मिलते हैं। इतने तो यहां शायद आर्मी चीफ को भी नहीं मिलते, लेकिन उनकी लिविंग कण्डीशन और इकोनॉमी में बहुत अंतर है। हमारे यहां पिछले कुछ अरसे में सेना व जवानों के प्रति इज्जत बढ़ी है। उम्मीद करते हैं कि यह गैप कम होगा, लेकिन यह गैप तो रहेगा।