हम इस वक्त खड़ हैं पावटा स्थित रावत की दुकान पर। यह वह परिवार है जिसने मावे की कचोरी का अविष्कार किया। यहां हमने मावे की कचोरी के इसह अविष्कारक परिवार से जुड़े रजनीश देवड़ा से बात की। उन्होंने बताया कि उनके परदादा रावतमल देवड़ा ने डेढ़ सौ साल पहले मावे की कचोरी का अविष्कार किया था। उनके दो पुत्र हुए, एक मांगीलाल देवड़ा और दूसरे रामचंद्र देवड़ा और रामचंद्र देवड़ा के पुत्र हैं रजनीश देवड़ा और आशीष देवड़ा । रजनीश ने बताया कि अब वे मावे की कचौरी बनाने की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
रजनीश और उनके कारीगर विक्रमसिंह ने बताया कि फीके मावे से मावे की कचोरी बनाते हैं। मैदे में देसी घी का मोयन और पानी एक निश्चित अनुपात मिला कर मावे की बनी गोलियों को भरा जाता है। मावे की गोलियों में जावत्री, जायफल, छोटी इलायची और बड़ी इलायची मिला कर गोलियां तैयार की जाती हैं, इसे कचोरी का भरावन या फिलिंग कहते हैं। इससे कचोरी तैयार होती है। यह कचोरी को देसी घी में तलते हैं। पूरी तरह पक जाने पर कचोरी में से घी निकाल देते हैं और इसे चाशनी में डुबो कर रखा जाता है। लीजिए तैयार हो गई मीठी खुशबू से महकती चाशनी में भीगी मावे की कचौरी। उन्होंने बताया कि एक किलो मैदे से 25 -30 मावे की कचोरी तैयार हो जाती है।