कांफ्रेंस आयोजक डॉ. गुलाम अली कामदार ने बताया कि पहले दिन 20 आई सर्जरी डॉ. कामदार हॉस्पिटल में की गई, जिसका सीधा प्रसारण होटल इंडाना में किया गया। पहले दिन डॉ. राजेश ने कोर्नियल बीमारी, डॉ. देवेन्द्र ने ग्लूकोमा और डॉ. संतोष ने थ्रीडी के माध्यम से ओक्युलोप्लास्टी की विभिन्न जानकारियां दी। कार्यक्रम में डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज नेत्र रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अरविंद चौहान ने सभी का आभार जताया।
अब आंख निकालने की जरूरत नहीं रेटिनोब्लास्टोमा में नई तकनीक आई है। कुछ साल पहले आंख निकाली जाती थी। अब ट्यूमर पर लेजर, रेडिएशन व कीमोथैरेपी आदि की जाती है। इसमें अगर बच्चे का ट्रीटमेंट नहीं करते है तो सौ प्रतिशत उसकी जान को खतरा रहता है। इसके लिए वर्तमान में सरकारी अस्पतालों में बहुत कम सुविधा है, लेकिन कुछ दानदाताओं के जरिए अस्पतालों में गरीब बच्चों को बचा लिया जाता है। हालांकि शरीर में कीमो देने से एनिमिया का खतरा रहता है। ऐसे में खून की नाडी से कीमो दिया जाता है। इसके साधारण लक्षण है कि किसी भी बच्चे का मोबाइल से फोटो लेने पर उसकी आंख पर काला या लाल रंग दिखाई देता है, लेकिन इस बीमारी में रोगी के आंख पर सफेद रिफ्लेक्शन आता है। आंखों में सफेद चमक आते ही तुरंत चिकित्सक के पास आना चाहिए। इसमें दूसरा एक भेंगापन भी एक वजह बन सकता है। यह बीमारी आनुवांशिक भी होती है। ऐसे में गर्भावस्था में ही जेनेटिक जांच से बीमारी का पता लगाकर ऐसी संतान को जन्म लेने से रोका जा सकता है। – डॉ. संतोष जी होनावर, हैदराबाद
स्टुराइड व नींद की दवा खतरनाक कई लोग रोशनी कम होने पर सफेद मोतिया के पकने का इंतजार करते है। इस बीच उन्हें पता नहीं लगता कि काला मोतिया आ चुका है। आजकल अंधापन काले मोतिया में रोका जा सकता है। जबकि बच्चों में भी काला मोतिया होता है। बड़ी आंखें है तो ये न सोचिए की सुंदर है, इसमें काला मोतिया होने के अवसर ज्यादा रहते है। ज्यादा स्टुराइड व नींद की दवा लेने से भी काला मोतिया का खतरा रहता है। इसके मुख्य लक्ष्ण है कि आंख में पानी आने का संतुलन बिगड़ जाता है। पहले इसका ट्रीटमेंट नहीं होता था, केवल संदेह रहता। लेकिन अब संदेह के आधार पर नहीं, पूर्णत जांच के आधार पर रोगी का इलाज होता है। बाजार में इसके लिए 60 तरह की दवाइयां आ चुकी हैं। हमारा देश इस बीमारी में दूसरे नंबर पर है, जहां यह बीमारी बढ़ रही है। लोगों को अपने केवल नजर व चश्मे के नंबर का ध्यान नहीं रखना चाहिए। संपूर्ण नेत्र जांच करवाकर आंखों को स्वस्थ रखा जा सकता है। हटकर बात करे तो बच्चों को लेटकर व बत्ती गुल कर टीवी नहीं देखनी चाहिए। कम से कम टीवी से छह मीटर की दूरी रखनी चाहिए। – डॉ. देविन्द्र सूद, नई दिल्ली