इस रिसर्च में कुपोषित बच्चों कीमाताआें और परिजनों के समक्ष ४२ तरह के सवाल रखे गए। जिनमें प्रमुखत: यह तथ्य पाया गया कि कुपोषित बच्चों की मांओं ने स्तनपान के साथ-साथ स्नेह में भी कमी रखी। यह उपेक्षित रवैया कई बच्चों के लिए कुपोषण का कारण बना। अधिकतर मांओं ने माना कि घटते वजन के दौरान वे अपने बच्चे से थोड़ा दूर रही थीं। इस रिसर्च में इस पहलू को सबसे अधिक तवज्जो दी गई।
वहीं कुपोषित बच्चों में यूरीनरी ट्रैक इन्फेक्शन के मामले ज्यादा मिले हंैं। ज्यादातर चिकित्सकों को शिकायत मिलती है कि कुपोषित बच्चों के खुराक लेने के बावजूद उनका वजन नहीं बढ़ा। जिसमें सामान्यत चिकित्सकों को शक केवल पेट में संक्रमण व अन्य संक्रमण पर जाता है। वहीं दूसरी ओर पश्चिमी राजस्थान में यूरीनल ट्रैक इन्फैक्शन के मामले ज्यादा मिले, जो बाद में मुश्किल से पकड़ में आए।
कम उम्र में मां की शादी और बच्चा कमजोर डॉ. अनुरागसिंह ने बताया कि अक्सर देश के कई राज्यों में बेटियों को बेटों के बजाय कम खाना खिलाया जाता है। यह भेदभाव भी कुपोषण को बढ़ावा देने में सहायक हुआ है। इसके बाद कमजोर बेटियों की कम उम्र में शादी रचा दी जाती है। इनमें से निकले ज्यादातर बच्चे कुपोषित होते हैं। जो प्री मैच्योर व कम वजन वाले बच्चे होते हैं। ये बच्चे आगे जाकर कुपोषण का सबसे प्रमुख कारण बनते हैं।
२०११ – २५६ – ० २०१२ – ४०८ – ०
२०१३ – ३१३ – ३ २०१४ – ३१३ – १
२०१५ – ४३३ – ३
२०१७ – ४७३ – ० (इस सारणी में २०१५ तक के आंकड़े जिले के हैं। शेष दो साल के आंकड़े शहर के पावटा जिला और मथुरादास माथुर अस्पताल से हैं।)