सूत्रों के अनुसार रात में यहां तीन मौत और हुईं। जिसके बाद तीनों अस्पतालों में आंकड़ा 22 तक पहुंच गया। रेजीडेंट डॉक्टर्स की हड़ताल के कारण तीनों अस्पतालों में पहले से तय ऑपरेशन टालने पड़े। आउटडोर में सुबह मरीज बड़ी संख्या में नहीं आए। अधिकतर कमरों में चिकित्सकों की कुर्सियां खाली रही। जहां वार्डों में मरीज भर्ती थे, वहां व्यवस्थाएं रामभरोसे नजर आई। कई जगह तो मरीजों की सारसंभाल पर्याप्त नहीं दिखी।
अस्पतालों में मरीज हुए कम
रेजीडेंट चिकित्सकों के हड़ताल पर जाने के बाद गुरुवार को अस्पतालों में मरीजों की संख्या कम हो गई। भर्ती मरीजों को बुधवार को छुट्टी दे दी गई। इसके अलावा दो दिन पहले अस्पताल में मरीज कम भर्ती करने का कार्य शुरू हो गया था। दोपहर को एमडीएम अस्पताल में सन्नाटा छाया रहा। गांधी अस्पताल में वार्ड खाली नजर आए। उम्मेद अस्पताल के शिशु रोग मरीजों को द्वितीय फ्लोर के वार्ड से प्रथम फ्लोर पर शिफ्ट किया गया।
रेजीडेंट चिकित्सकों के हड़ताल पर जाने के बाद गुरुवार को अस्पतालों में मरीजों की संख्या कम हो गई। भर्ती मरीजों को बुधवार को छुट्टी दे दी गई। इसके अलावा दो दिन पहले अस्पताल में मरीज कम भर्ती करने का कार्य शुरू हो गया था। दोपहर को एमडीएम अस्पताल में सन्नाटा छाया रहा। गांधी अस्पताल में वार्ड खाली नजर आए। उम्मेद अस्पताल के शिशु रोग मरीजों को द्वितीय फ्लोर के वार्ड से प्रथम फ्लोर पर शिफ्ट किया गया।
प्लान ऑपरेशन टले
महात्मा गांधी, मथुरादास माथुर और उम्मेद अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर में गुरुवार को महज इमरजेंसी ऑपरेशन किए गए। इसके अलावा प्लान ऑपरेशन टाल दिए गए। अस्पतालों के ऑपरेशन थियेटरों में हर रोज करीब 100 से ज्यादा ऑपरेशन होते हैं। इन अस्पतालों में करीब 30 के आसपास ऑपरेशन थियेटर हैं, जो अधिकांश खाली रहे।
महात्मा गांधी, मथुरादास माथुर और उम्मेद अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर में गुरुवार को महज इमरजेंसी ऑपरेशन किए गए। इसके अलावा प्लान ऑपरेशन टाल दिए गए। अस्पतालों के ऑपरेशन थियेटरों में हर रोज करीब 100 से ज्यादा ऑपरेशन होते हैं। इन अस्पतालों में करीब 30 के आसपास ऑपरेशन थियेटर हैं, जो अधिकांश खाली रहे।
मेडिकल आईसीयू में रहा भयावह मंजर
मथुरादास माथुर अस्पताल के एमआईसीयू में गुरुवार दोपहर हालात डरावने थे। यहां पत्रिका टीम के अंदर प्रवेश करने के दौरान अधिकतर मरीजों की हालत गंभीर थी। ज्यादातर एक चिकित्सक के भरोसे व्यवस्था थी। अंदर चिकित्सक एक-एक मरीज की जांच कर रहा था। यहां सुबह कुछ मरीजों की मौत भी हुई। इस जगह पर अस्पताल में सभी परिजन हड़ताल को कोसते भी नजर आए।
मथुरादास माथुर अस्पताल के एमआईसीयू में गुरुवार दोपहर हालात डरावने थे। यहां पत्रिका टीम के अंदर प्रवेश करने के दौरान अधिकतर मरीजों की हालत गंभीर थी। ज्यादातर एक चिकित्सक के भरोसे व्यवस्था थी। अंदर चिकित्सक एक-एक मरीज की जांच कर रहा था। यहां सुबह कुछ मरीजों की मौत भी हुई। इस जगह पर अस्पताल में सभी परिजन हड़ताल को कोसते भी नजर आए।
बोले जिम्मेदार इन मरीजों की हालत पहले से गंभीर थी। अस्पताल में 6 मेजर और 4 माइनर ऑपरेशन हुए।
डॉ. पीसी व्यास, अधीक्षक, एमजीएच सभी मरीजों की मौत उपचार के दौरान हुई है। इलाज के अभाव में नहीं हुई। इनमें कई सिर की चोट, गंभीर व हृदय रोगी थे। अस्पताल में 13 मेजर, 3 माइनर व 2 सिजेरियन ऑपरेशन हुए। डॉ. शैतानसिंह राठौड़, अधीक्षक, एमडीएमएच
डॉ. पीसी व्यास, अधीक्षक, एमजीएच सभी मरीजों की मौत उपचार के दौरान हुई है। इलाज के अभाव में नहीं हुई। इनमें कई सिर की चोट, गंभीर व हृदय रोगी थे। अस्पताल में 13 मेजर, 3 माइनर व 2 सिजेरियन ऑपरेशन हुए। डॉ. शैतानसिंह राठौड़, अधीक्षक, एमडीएमएच
उम्मेद अस्पताल में 18 सिजेरियन ऑपरेशन हुए। अन्य तरह के ऑपरेशन नहीं हुए। कुछ गंभीर बीमार बच्चों की मौत हुई हंै। डॉ. रंजना देसाई, अधीक्षक, उम्मेद अस्पताल एमडीएम में इलाज के अभाव में वापस लौटे मरीज
संभाग के सबसे बड़े एमडीएम अस्पताल में चिकित्सकों व रेजीडेंट्स की हड़ताल का असर गुरुवार को भी नजर आया। अस्पताल में चिकित्सक नहीं होने की वजह से कई मरीजों को एम्बुलेंस से ही वापस लौटना पड़ा।
कुछ मरीज इलाज की आस में अस्पताल परिसर में भटकते दिखाई दिए। वहीं गुरुवार को अस्पताल में आने वाले मरीजों की संख्या में भी कमी दर्ज की गई। कई लोग निजी अस्पतालों में इलाज करवाने के लिए पहुंचे। चिकित्सकों की हड़ताल कितने दिन रहेगी यह तो कोई नहीं जानता लेकिन इससे कई मरीजों को जेब से मोटी रकम खर्च कर अन्य अस्पतालों में जाने को विवश होना पड़ रहा है। इधर स्ट्रेचर का सामान लाने में उपयोग
बुधवार को ट्रोमा वार्ड में आए घायलों को वार्ड तक ले जाने के लिए स्ट्रेचर भी नसीब नहीं हुआ। जिसके बाद मरीजों को हाथों में उठाकर वार्ड तक ले जाना पड़ा। इतना सबकुछ होने के बाद भी अस्पताल प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया है। अस्पताल की बिगड़ी व्यवस्थाओं में कोई फर्क नजर नहीं आया। मरीजों को लाने ले जाने में प्रयोग हो रहे स्ट्रेचर पर अस्पताल कर्मचारी सामान ले जाते दिखाई दिए। इन्हें रोकने टोकने वाला भी कोई नहीं था। ऐसे में मरीजों को हो रही परेशानी से अस्पताल प्रशासन को कोई सरोकार नहीं है।