ये थे अज़ीम फऩकार
उस फेस्टिवल में बॉलीवुड के जिन तीन अजीम फनकारों ने शिरकत की थी, वे तीनों ही अब इस दुनिया में नहीं रहे। ये थे जोधपुर मूल के शीर्ष अभिनेता और कवि महीपाल, अपनी फिल्म रेशमा और शेरा की जोधपुर के ओसियां में शूटिंग करने वाले महान अदाकार और सार्थक सिनेमा के बंेहतरीन अदाकार फारूक शेख़। फेस्टिवल में उस दिन अदाकारा दिव्या भारती को भी आना था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और 12 मार्च 1993 को ही उनका मुंबई में निधन हो गया था।
उस फेस्टिवल में बॉलीवुड के जिन तीन अजीम फनकारों ने शिरकत की थी, वे तीनों ही अब इस दुनिया में नहीं रहे। ये थे जोधपुर मूल के शीर्ष अभिनेता और कवि महीपाल, अपनी फिल्म रेशमा और शेरा की जोधपुर के ओसियां में शूटिंग करने वाले महान अदाकार और सार्थक सिनेमा के बंेहतरीन अदाकार फारूक शेख़। फेस्टिवल में उस दिन अदाकारा दिव्या भारती को भी आना था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और 12 मार्च 1993 को ही उनका मुंबई में निधन हो गया था।
खूबसूरत वेला, सुनहरी यादें फेस्टिवल का उदघाटन दर्पण छविगृह में सुनील दत्त व संस्थान के संरक्षक पूर्व सांसद गजसिह ने किया था। तब राजस्थानी फिल्मों के 50 वर्ष हुए थे। पहली ब्लैक एंड व्हाइट राजस्थानी फिल्म नजऱाना हिन्दी व राजस्थानी में अनुपम फिल्म मुम्बई..निर्देशन व संगीत जी.पी कपूर कलाकार सुनयना, ललिता देवी,सेंसर बोर्ड से मारवाड़ी फिल्म के रूप में पारित हुई थी। उस यादगार आयोजन से पहले लगभग 25 गोष्ठियां हुई थीं। जोधपुर फिल्म सोसाइटी के तत्कालीन सचिव स्व. मोहनस्वरूप माहेश्वरी व जगदेव सिंह खालसा, निर्माता निर्देशक रामराज नाहटा व नाहटा बन्धु, अभिनेता महीपाल, निर्माता निर्देशक बोहरा ब्रदर्स फिल्म वितरक श्याम जालानी ने साथ निभाया था। उस वेला में राजस्थान की प्रथम फिल्म वितरक सिने संस्थान जार्ज सिने सर्किट भी बनी थी साक्षी।
चार दिन के कार्यक्रम के दौरान तीन सत्र फेस्टिवल के चार दिन के कार्यक्रम के दौरान तीन सत्र हुए थे। दर्पण सिनेमा हॉल में फिल्में प्रदर्शित की गई थीं। रोजाना तीन फिल्में दिखाई जाती थीं। जहां सिनेमाहॉल में फिल्में दिखाई जा रही थीं, वहीं टाउन हॉल में सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहे थे तो उम्मेद अस्पताल के मिनी ऑडिटोरियम में नियमित विचार गोष्ठियां हो रही थीं। फिल्म पे्रमी दर्शकों के लिए यह एक खूबसूरत, सुनहरे और यादगार लम्हे थे। तब तत्कालीन संभागीय आयुक्त ललित कोठारी, तत्कालीन जिला कलक्टर सुनील अरोड़ा, जिला पुलिस के अधिकारियों , पत्रकारों व लगभग सभी कला प्रेमियों व कलाकारों के पूण सहयोग से यह महोत्सव एक यादगार प्रस्तुति रहा, जो आज भी याद किया जाता है। आयोजन में अध्यक्ष जे के व्यास, संस्थापक सचिव सुशील व्यास, संयोजक राजेन्द्र व्यास, स्वागत टीम ज्ञानेश बन्टी लक्ष्मीनारायण ने जो समां सजाया, वो आज भी भुलाए नहीं भूलता। उस समय उम्मेद अस्पताल ऑडिटोरियम में आयोजित विचार गोष्ठी में अभिनेता फारूक शेख को मंच पर बुलाते समय आयोजक और मंच संचालक सुशील व्यास ने फिल्म उमराव जान के गीत का यह शेर पढ़ा था:
इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार
इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार
दीवार-ओ -दर को गौर से पहचान लीजिए
फारूक शेख ने यह वादा निभाया और वे बाद में भी बार-बार जोधपुर आए, लेकिन फेस्टिवल के दरो-दीवार दुबारा नजर नहीं आए। उस फेस्टिवल के बाद जोधपुर में कभी भी राजस्थानी फिल्म फेस्टिवल नहीं हुआ। अगर हम यूं कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास में यह फेस्टिवल संगे मील और एक लंबी लकीर की सी हैसियत रखता है।
फारूक शेख ने यह वादा निभाया और वे बाद में भी बार-बार जोधपुर आए, लेकिन फेस्टिवल के दरो-दीवार दुबारा नजर नहीं आए। उस फेस्टिवल के बाद जोधपुर में कभी भी राजस्थानी फिल्म फेस्टिवल नहीं हुआ। अगर हम यूं कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास में यह फेस्टिवल संगे मील और एक लंबी लकीर की सी हैसियत रखता है।
-एम आई जाहिर ,जोधपुर