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सरकारें किसानों के लिए घोषणाएं तो बड़ी-बड़ी करती हैं, लेकिन देती कुछ नहीं-हाईकोर्ट

locationजोधपुरPublished: Oct 13, 2017 03:50:58 pm

Submitted by:

Nidhi Mishra

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर दायर जनहित याचिका का निस्तारण
 

Govt only announce facilities for farmers: High Court

Govt only announce facilities for farmers: High Court

राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नन्द्राजोग व जस्टिस रामचंन्द्रसिंह झाला की खंडपीठ ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में हेराफेरी के सम्बन्ध में दायर जनहित याचिका का निस्तारण कर दिया। खंडपीठ ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकारें किसानों के लिए घोषणाएं तो बड़ी-बड़ी करती हैं, लेकिन वास्तव में देती कुछ नहीं है। केवल दिखावा किया जा रहा है। हाईकोर्ट ने कहा कि जो कैलेंडर निर्धारित किया गया था, जो प्रत्येक वर्ष खरीफ के लिए मार्च और रबी के लिए सितंबर तक बीमा कवर को अधिसूचित किया जाना था उसे लागू किया जाए।
दरअसल, हाईकोर्ट में घनश्याम डागा व अन्य की ओर से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर जनहित याचिका दायर की गई। पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश जोशी व अधिवक्ता कपिल जोशी ने कहा कि केन्द्र सरकार की ओर से किसानों के लिए जारी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में राज्य सरकार की ओर से मानमाने तरीके से बदलाव कर इसे प्रभावहीन बना दिया गया है। ना तो जिला स्तरीय तकनीकी समिति की ओर से निर्धारित फसलों के मूल्य के अनुसार स्केल ऑफ फाइनेंस तय की जाती है और न ही तय कलेंडर के अनुसार फसलों की अधिसूचना जारी की जाती है। इस पर खंडपीठ ने राज्य सरकार से जवाब तलब कर सुनवाई करने के बाद सरकार के नाम निर्देश जारी कर याचिका का निस्तारण किया। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश जोशी तथा सरकार की ओर से एएजी श्यामसुंदर लादरेचा व विकास चैधरी ने पैरवी की।
न पानी, न बिजली न समर्थन मूल्य


राज्य में किसानों की हालत लगातार बिगडऩे के पीछे राज्य सरकार की नीतियों को दोषी माना जा रहा है। गत रबी की फसल के दौरान प्रदेश के अधिकांश इलाकों में किसान बिजली की कमी के कारण अपनी सिंचाई समय पर नहीं कर पाए। उन्हें पूरी बिजली नहीं मिली। ऐसे में जो फसल मिली, वह ओलावृष्टि के भेंट चढ़ गई। किसानों ने मुआवजा मांगा तो आधा-अधूरा मुआवजे की घोषणा की। इसके बाद सरसों, प्याज व मूंगफली की भारी पैदावार होने के बावजूद सरकार ने समर्थन मूल्य पर इनकी खरीद नहीं की। केन्द्र व राज्य सरकार के विवाद में फिर किसान फंस गए। किसानों ने अपना माल कम दाम पर दलालों को बेचा। इससे भी उनको बड़ा घाटा हुआ। इसके बाद मूंग की फसल अच्छी हुई तो सरकार ने इसकी समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू की। लेकिन सरकार ने फिर झांसा देते हुए इसका भुगतान नहीं किया। अब हालात यह है कि किसानों के पास खेत में बुवाई के लिए पैसे नहीं है। वे खरीफ की तैयारी करने के लिए फिर से सेठ-साहूकारों की शरण में जा रहे हैं।
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