उन्होंने कहा कि समाज में इसी शरीर को जानते हैं, लेकिन शरीर के भीतर जो कुछ है, वह शरीर से ज्यादा महत्वपूर्ण है। जैसा अन्न होगा, वैसा मन होगा। अन्न को यज्ञ कहा गया है। अन्न से ही रस, रक्त व मांस आदि सात धातुएं बनती हैं, आभा मंडल बनता है और अंत में मन बनता है।
डॉ. कोठारी ने कहा कि अन्न सात्विक है तो मन सात्विक होगा। अन्न तामसिक होगा तो विचार भी तामसिक होंगे। अन्न में ऐसे कोई चीज ना हो, जो दूषित हो। हम भाग रहे हैं—पिज्जा, बर्गर, मैगी खा रहे हैं। नियमित रूप से सादा भोजन ग्रहण करना है। उसके बिना अच्छे विचार आएंगे ही नहीं। बीमारियां बाहर से नहीं, भीतर से आती हैं। जिनके विचार अच्छे नहीं हैं उनका शरीर रोगी होगा। हमें मां बाप के पास बैठ कर शरीर, मन कैसे काम करता है, उसके बारे में समझना चाहिए।
नींव अच्छी तो मकान अच्छा
उन्होंने कहा कि सब चाहते है अच्छा, बड़ा बनूं। इसके लिए खुद के बारे में जानकारी करना आवश्यक है। विकास के अहंकार में जिंदगी के मूल्य छोड़ दें। नींव अच्छी हो तो मकान अच्छा बनेगा। नींव कच्ची रही तो तकलीफ होगी। हमारे
मन में प्रश्न पैदा होना चाहिए कि ऐसा क्यूं हो रहा है? सदियों से जो हो रहा है, यदि वह गलत होता तो रुक जाता।
उन्होंने कहा कि सब चाहते है अच्छा, बड़ा बनूं। इसके लिए खुद के बारे में जानकारी करना आवश्यक है। विकास के अहंकार में जिंदगी के मूल्य छोड़ दें। नींव अच्छी हो तो मकान अच्छा बनेगा। नींव कच्ची रही तो तकलीफ होगी। हमारे
मन में प्रश्न पैदा होना चाहिए कि ऐसा क्यूं हो रहा है? सदियों से जो हो रहा है, यदि वह गलत होता तो रुक जाता।
करना है भीतर की शक्तियों का विकास
डॉ. कोठारी ने कहा कि शरीर से जो तरंगें निकलती हैं, वे प्रभावित करती हैं। मंत्रों की ध्वनियां किसी एक बात को ध्यान में रखकर हैं। शब्द को हम ब्रह्म कहते हैं। अहं ब्रह्मास्मि कहते हैं, खुद को हम ईश्वर कहते हैं। हमें हमारे भीतर जो शक्तियां हैं, उनका विकास करना है। विकास का मतलब ईश्वर ने जो ताकत दी है, उसका विकास करना है। इसलिए जहां प्रार्थना की जाती है वहां सुगंध होगी और जहां गलत शब्द प्रयोग होगा, वहां दुर्गन्ध होगी। शब्दों में शक्ति है।
डॉ. कोठारी ने कहा कि शरीर से जो तरंगें निकलती हैं, वे प्रभावित करती हैं। मंत्रों की ध्वनियां किसी एक बात को ध्यान में रखकर हैं। शब्द को हम ब्रह्म कहते हैं। अहं ब्रह्मास्मि कहते हैं, खुद को हम ईश्वर कहते हैं। हमें हमारे भीतर जो शक्तियां हैं, उनका विकास करना है। विकास का मतलब ईश्वर ने जो ताकत दी है, उसका विकास करना है। इसलिए जहां प्रार्थना की जाती है वहां सुगंध होगी और जहां गलत शब्द प्रयोग होगा, वहां दुर्गन्ध होगी। शब्दों में शक्ति है।
प्रश्नोत्तरी के माध्यम से दिखाई दिशा
डॉ. कोठारी ने प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम में पूछे गए प्रश्नों के सारगर्भित उत्तर दिए। उन्होंने कॅरियर से लेकर अध्यात्म के गूढ़ विषयों पर पूछे गए प्रश्नों के सरलतम तरीके से जवाब देते हुए जिज्ञासाएं शांत कीं। कार्यक्रम में क्षेत्र के प्रबुद्धजन,अफसर, शिक्षक, युवा एवं विद्यार्थी मौजूद थे।
डॉ. कोठारी ने प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम में पूछे गए प्रश्नों के सारगर्भित उत्तर दिए। उन्होंने कॅरियर से लेकर अध्यात्म के गूढ़ विषयों पर पूछे गए प्रश्नों के सरलतम तरीके से जवाब देते हुए जिज्ञासाएं शांत कीं। कार्यक्रम में क्षेत्र के प्रबुद्धजन,अफसर, शिक्षक, युवा एवं विद्यार्थी मौजूद थे।