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आज के दौर के संगीत को मेलॉडी किंग कुमार सानू ने बताया साजिश….!

locationजोधपुरPublished: Sep 17, 2017 07:05:05 pm

Submitted by:

mahesh ojha

एक ग्रुप कर रहा हिन्दुस्तान की संस्कृति को दूषित और बर्बाद
 

Sadhna Sargam and Kumar Sanu

Sadhna Sargam and Kumar Sanu

समाज पर संगीत और फिल्में गहरी छाप छोड़ती है। गीत के शब्दों और लय ताल का लोगों के मानस पर प्रभाव जरूर पड़ता है। बीते दशकों और आज के दौर के गीत-संगीत में कितना बदलाव आया है। क्या संगीत में यह बदलाव सही दिशा में हो रहा है। इन सभी सवालों के जवाब सैकड़ों फिल्मों में आवाज देने वाले बॉलीवुड के मेलोडी किंग रहे कुमार सानू ने मुम्बई स्थित फिल्म सिटी में राजस्थान पत्रिका से हुई खास बातचीत में बेबाकी से दिए। इसके साथ ही बीते दशक में अपनी रेशमी आवाज से लोगों के दिलों पर छाप छोडऩे वाली तरन्नुम की हिमायती ख्यातनाम गायिका साधना सरगम ने भी इन सवालों के जवाब बड़ी साफगोई से दिए
आज का संगीत कोई साजिश तो नहीं : कुमार सानू

सवाल: आज के दौर के गीत-संगीत के बारे आपका क्या कहना है?

आज के दौर की फिल्मों के गानों को सुनकर लगता है कि कोई साजिश तो नहीं हो रही है। एक ग्रुप बन गया है, जो हिन्दुस्तान की संस्कृति को दूषित और बर्बाद कर रहा है। गलत शब्दों का इस्तेमाल कर गाने तैयार करने वालों को जिम्मेदारी समझनी चाहिए। उनको समझना होगा कि हीरो और हीरोइन के मुंह से निकली बात को हजारों-लाखों लोग फॉलो करते हैं। खराब शब्द और वाला गाना जाता है तो उसका समाज पर इम्पेक्ट पड़ता है। समाज में गलत मैसेज जाता है।
सवाल: क्या अब अच्छे गाने या संगीत नहीं आ रहा है?
दुर्भाग्यवश लोगों को अच्छे गाने सुनने को नहीं मिल रहे हैं। अच्छा संगीत आ रहा है, लेकिन ऐसे गानों की संख्या बहुत कम होता है। 90 के दशक में किसी फिल्म में आठ गाने थे, तो सारे हिट होते थे। अब छह या सात में से एक या दो गाने अच्छे बन पाते हैं।
सवाल: फिल्मों में क्षेत्रीय भाषा गीतों के बारे में क्या राय है?

हमारी भाषा हिंदी है। फिल्म में एक गाना रीजनल डाल दिया जाए तो अच्छा लगेगा। यह नहीं हो कि सारे गाने ही रीजनल डाल दिए जााएं। यह याद रखना होगा कि हिंदुस्तान में पंजाब प्रांत है। पंजाब में हिंदुस्तान नहीं है। सारे गाने एक ही प्रांत की भाषा के डाल दिए जाएं तो दर्शक स्वीकार नहीं करेंगे।
सवाल: संगीत में क्या हो, जिसे लोग पसंद करें?

गाना रोमांटिक हो उसमें मेलोडी हो। सुनने से सुकून मिले। बस एंटरटेनमेंट को लेकर कहां तक चलेंगे। वर्तमान में वन ट्रेक चल रहा है-सेक्स या हिंसा। यह ठीक नहीं है। फिल्म वालों को मानसिकता बदलनी होगी। दर्शकों में अच्छी चीज की मांग है। वरना दंगल फिल्म सुपरडुपर हिट नहीं होती। लाोगों से कहना है कि समाज को खराब करने वाले गानों को अवॉइड करें, डाउनलोड ही नहीं करें।

सुरों पर ताल का शोर पड़ रहा भारी: साधना सरगम

सवाल: आज के दौर में के गीत-संगीत के बारे आपका क्या कहना है?
समय के साथ संगीत का रंग-ढंग भी बदलता है। 90 के दशक में मेलोडी थी। अच्छे गीत लिखे गए। समय के साथ सुनने वालों की मानसिकता में भी तब्दीली आती है। पिछले दशकों को देखें तो गीत और संगीत की स्टाइल बदल गई है। अब संगीत में कम्प्यूटर आ गए। नई तकनीक आ गई। इसका प्रभाव तो पड़ा ही है। काफी तब्दीलियां अच्छी है। ट्रेक सिस्टम से गायक-गायिका एक ही गाना अलग-अलग गा सकते हैं।
सवाल: क्या अब अच्छे गाने या संगीत नहीं आ रहा है?

अब बढिय़ा गीत भी नहीं लिखे जा रहे हैं। दिल को छू सकें, ऐसे शब्द नहीं हैं। गीतों में मेलोडी और कविता की कमी है। रोमांटिक गाने कम ही तैयार हो रहे हैं। अब इसलिए कोई भी नया गाना ज्यादा समय के लिए लोगों की जुबान पर नहीं रहता है। कम्पोजिशन ही उड़ती हुई सी मिले तो योग्यता क्या दिखा पाएंगे। वर्तमान में गायक की आवाज से ज्यादा म्यूजिक का शोर होता है। इसे सुनकर लगता है कि सुरों पर ताल भारी पड़ रही है।
सवाल: फिल्मों में क्षेत्रीय भाषा गीतों के बारे में क्या राय है?

हमारे देश के हर राज्य में अच्छा गाने और सिखाने वाले हैं। अभी छोटे-छोटे बच्चे बहुत बढिय़ा गा रहे हैं। रीजनल म्यूजिक में अच्छा काम हो रहा है। मैंने भी राजस्थानी से लेकर दक्षिण भारत की क्षेत्रीय भाषाओं में गीत गाए हैं। यहां तक कि संगीतकार एआर रहमान ने तमिल गाने के लिए मेरी आवाज का इस्तेमाल किया है।
सवाल: संगीत में क्या हो, जिसे लोग पसंद करें?
फिल्मों में अच्छी स्टोरी हो। उसकी के अनुसार संगीत हो। गीतों में अच्छे शब्द होने चाहिए, जो श्रोताओं के दिलों को छू सकें। अब की कम्पॉजिशन में 70-80 या 90 के दशक जैसी कविता नहीं है। रोमांटिक मूड के गाने ज्यादा पसंद किए जाते हैं। गीतों के शब्द साफ-सुथरे होने चाहिए। अच्छा म्यूजिक ही सुना और पसंद किया जाता है।
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