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श्रीराम भले जन्मे अयोध्या में पर विराजे हैं मारवाड़ में, जोधपुर में हैं 17वीं शताब्दी के राम राज्याभिषेक के दुर्लभ सचित्र ग्रंथ

locationजोधपुरPublished: Oct 18, 2017 02:54:07 pm

Submitted by:

Nandkishor Sharma

भारत के 45 दुर्लभ ग्रंथों में शामिल आर्ष रामायण
 

rare pictures of lord Rama preserved in Jodhpur

rare pictures of lord Rama preserved in Jodhpur

भले ही प्रभु राम अयोध्या में जन्मे हों, लेकिन आज भी मारवाड़ में विराजे हुए हैं। सूर्यनगरी त्रेता युग की लीलाओं को 17वीं शताब्दी से अपनी आस्था के आंचल में समेटे हुए हैं। भगवान विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन प्रसंगों को समेटने वाले दुर्लभ गं्रथ आर्ष रामायण जोधपुर में संरक्षित है। भगवान राम के प्रेरक जीवन से जुड़ा 368 साल प्राचीन दुर्लभ ग्रंथ आर्ष रामायण और श्रीराम के जीवन चरित्र से जुड़ा 1872 ईस्वीं का 653 पृष्ठीय वृहद ग्रंथ जोधपुर के पीडब्ल्यूडी रोड स्थित राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में मौजूद है।
वर्ष 1649 से 1653 में लिपिबद्ध मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह ने मनोहर नामक चित्रकार से स्वर्णांकित ग्रंथ तैयार करवाया था। विश्वविख्यात आर्ष रामायण में अरण्यकाण्ड वनपर्व के कुल 36 चित्र हैं। इनमें सीता हरण, जटायु वध, अगस्त्य ऋषि आश्रम में राम-लक्ष्मण-सीता गमन, सुपर्णखा नाक विदीर्ण करते लक्ष्मण आदि के सूक्ष्म मनमोहक चित्र मेवाड़ शैली में बने है। दशानन वध के बाद भगवान राम के दिवाली के दिन अयोध्या लौटने पर अयोध्यावासियों की ओर से स्वागत के चित्र भी मनमोहक हैं। अयोध्या लौटने पर राम-लक्ष्मण के साथ भरत व शत्रुघ्न को उनकी पत्नियों के साथ स्वागत करते दर्शाया गया है। आर्ष रामायण बालकाण्ड प्रथम और अयोध्याकाण्ड मुंबई के प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम में हैं, लेकिन किष्किन्धा व बालकाण्ड द्वितीय और युद्धकाण्ड ब्रिटिश म्यूजियम लंदन में संरक्षित हैं। प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में आर्ष रामायण का अरण्यकाण्ड वनपर्व मौजूद है।
दशानन का मुख गदर्भ का


प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में मौजूद आर्ष रामायण के वनपर्व से जुड़े चित्रों में मरीचि के हरिण वेश में सीता को ललचाने के दृश्य का सुंदर चित्र है। इस चित्र में दशानन रावण के एक मुख का मध्य भाग गदर्भ का बनाया हुआ है।
भारत के 45 दुर्लभ ग्रंथों में एक


नेशनल ट्रेजर में चयन आर्ष रामायण ग्रंथ सम्पूर्ण भारत के दुर्लभ 45 ग्रंथों में से एक है। इनको राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन नई दिल्ली की ओर से नेशनल ट्रेजर ऑफ इंडिया घोषित किया गया है। वर्ष 2006 में अक्टूबर से जनवरी 2007 तक जर्मनी के फ्रैंकफर्ट शहर में आयोजित पुस्तक प्रदर्शनी में भी आर्ष रामायण प्रदर्शित की गई थी।
राजस्थानी भाषा में लिपिबद्ध अवतार चरित


प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में मेवाड़ चित्र शैली के उत्कृष्ट उदाहरण अवतार चरित सन 1872 ईस्वीं में राजस्थानी भाषा में लिपिबद्ध किए गए थे। करीब 653 पृष्ठीय वृहद ग्रंथ में भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है। प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी डॉ. कमलकिशोर सांखला ने बताया कि नरहरिदास बारहठकृत अवतार चरित में भगवान राम के विवाह, जनकपुरी में बारात प्रवेश करते हुए, चारों भाइयों के विवाह के दृश्य, रामचन्द्र को विवाह के दौरान उपहार में मिली सामग्री, परशुराम धनुष तोड़ते राम, वनवास पूरा कर अयोध्या लौटते राम, राम के राज्याभिषेक सहित राम के जीवन प्रसंग से संबंधित घटनाओं के सूक्ष्म चित्रांकन मय विवरण के लिपिबद्ध हैं। इन चित्रों में सोने व चांदी का बहुतायत में प्रयोग किया गया है।
10 चुनिंदा सुंदर चित्रों का फोल्डर

प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में संग्रहीत मेवाड़ स्कूल के आर्ष रामायण और अवतार चरित के सुंदर चित्रों का समावेश है। रामचरित मानस के प्रसंग पर आधारित आर्ष रामायण के चित्रों में से 10 चुनिंदा सुंदर चित्रों का एक फोल्डर बनाया है। यह फोल्डर प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान ने विक्रय केन्द्र में रखा है। -डॉ. वसुमती शर्मा, कार्यवाहक निदेशक, प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर

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