प्रदेश के पहले ट्रांसजेंडर को सरकारी नौकरी देने का आदेश राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश दिनेश मेहता ने महत्वपूर्ण आदेश जारी कर प्रदेश के पहले व देश के तीसरे ट्रांसजेंडर को सरकारी नौकरी देने का आदेश दिया है। अदालत ने पुलिस विभाग को कांस्टेबल पद पर वर्ष 2015 से नोशनल परिलाभ सहित छह सप्ताह में ट्रांसजेंडर को नियुक्ति देने का आदेश दिया।
न्यायाधीश मेहता ने जालोर जिले में रानीवाड़ा थाना क्षेत्र निवासी गंगाकुमारी की ओर से दायर याचिका स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया। आदेश में कहा गया है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति के भेदभाव नहीं किया जा सकता। वह पुरुष व महिला की भांति सरकारी नियुक्ति के लिए बराबर का हकदार है।
अधिवक्ता रितुराजसिंह ने याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए कोर्ट को बताया कि पुलिस विभाग ने 14 जुलाई 2013 को 12 हजार पदों के लिए कांस्टेबल की भर्ती निकाली थी। इसमें 1.25 लाख उम्मीदवारों ने आवेदन किया था। परीक्षा के बाद 11,500 अभ्यर्थी चयनित हुए, इनमें याचिकाकर्ता गंगाकुमारी का नाम भी शामिल था।
मेडिकल जांच में हुआ खुलासा मेडिकल जांच में पाया गया कि वह ट्रांसजेंडर है, तब विभाग ने उसे नियुक्ति देने से इनकार कर दिया। गंगाकुमारी ने कई परिवेदनाएं लिखीं, लेकिन उच्चाधिकारियों ने जवाब नहीं दिया। इस पर याची ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई।
ट्रांसजेंडर भी भारत के नागरिक सुनवाई के दौरान कहा गया कि उच्चतम न्यायालय ने अप्रेल 2015 में नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी बनाम सरकार मामले में ट्रांसजेंडरों के हक के संबंध में संपूर्ण गाइडलाइंस जारी की है। इसमें व्याख्या की गई है कि अनुच्छेद 14, 16 व 21 जेंडर न्यूट्रल है। कहीं भी यह नहीं लिखा है कि यह अनुच्छेद महिला या पुरुष पर लागू होगा। यह लिखा गया है कि यह भारत के नागरिक पर लागू होगा। अत: ट्रांसजेंडर इसकी परिभाषा में आएंगे। उनसे भेदभाव नहीं किया जा सकता। यही नहीं, एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति का हक है कि वह आवेदन करते समय अपना gender पुरुष महिला या ट्रांसजेंडर चुनना चाहता है, तो तीनों में से इच्छा अनुसार gender चुन सकता है। न्यायालय को यह भी बताया गया कि ट्रांसजेंडर को ओबीसी आरक्षण का लाभ भी उच्चतम न्यायालय ने दिया है।
सरकार का तर्क सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि चूंकि ट्रांसजेंडर के संबंध में विधानसभा में एक बिल लंबित है। जब तक बिल लंबित रहता है, तब तक याचिकाकर्ता को नियुक्ति नहीं दी जा सकती।