आहुति अपनी लगाओ और खुद समिधा चुनो
उन्होंने कविता सुनाई थी- यदि अंधेरा छा गया तो इस तरह चीखो नहीं, कायरांे की भीड़ में नारे नये सीखो नहीं, तुम रणागंण में खड़े हो युद्ध कौशल खुद चुनो, आहुति अपनी लगाओ और खुद समिधा चुनो…। ये कविताएं पेश कर विख्यात शीर्ष कवि बालकवि बैरागी ने भावविभोर कर दिया था। उस अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में देश के कई शहरों के हिन्दी, राजस्थानी व उर्दू कवियों को एक से बढ़ कर एक रचनाओं पर खूब दाद मिली थी। वह अवसर कवियों और साहित्य प्रेमी श्रोताओं दोनों के लिए सुनहरा था। वे कवियों को दाद दे रहे थे और बाद में वे साहित्य प्रेमी लोगों से मिले भी थे।
उन्होंने कविता सुनाई थी- यदि अंधेरा छा गया तो इस तरह चीखो नहीं, कायरांे की भीड़ में नारे नये सीखो नहीं, तुम रणागंण में खड़े हो युद्ध कौशल खुद चुनो, आहुति अपनी लगाओ और खुद समिधा चुनो…। ये कविताएं पेश कर विख्यात शीर्ष कवि बालकवि बैरागी ने भावविभोर कर दिया था। उस अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में देश के कई शहरों के हिन्दी, राजस्थानी व उर्दू कवियों को एक से बढ़ कर एक रचनाओं पर खूब दाद मिली थी। वह अवसर कवियों और साहित्य प्रेमी श्रोताओं दोनों के लिए सुनहरा था। वे कवियों को दाद दे रहे थे और बाद में वे साहित्य प्रेमी लोगों से मिले भी थे।
इन कवियों ने निभाया था साथ
बाल कवि बैरागी के सान्निध्य में हुए उस कवि सम्मेलन में तब प्रख्यात शाइर शीन काफ निजाम ने चिरपरिचित तरन्नुम में..चिराग कोई भी जले बुझाना है, हुनर हवा ने ये जाने कहां से सीखा है, गाजियाबाद के लोकप्रिय कवि कुंअर बेचैन ने..अपने आंचल को भिगोती ही चली जाती है, जिंदगी रोई तो रोई ही चली जाती है.., जैसलमेर के सुपरिचित राजस्थानी कवि आईदानसिंह भाटी ने. नदी सूखगी समदर खारौ, शब्द बीमारू रूंख उदास, कवि गमादी अटपटबाणी, कांई हुवैला कुण जांणै? प्रस्तुत कर बेशुमार दाद पाई थी। वहीं जयपुर के अशोक चारण ने व्यवस्था पर चोट करते हुए..गुजरात में बापू के ख्वाब सारे ध्वस्त हुए, जम्मू कश्मीर भी फिर जार-जार हो गए.. ओज की गेय कविता सुना कर हॉल को गुुंजायमान कर दिया था।
बाल कवि बैरागी के सान्निध्य में हुए उस कवि सम्मेलन में तब प्रख्यात शाइर शीन काफ निजाम ने चिरपरिचित तरन्नुम में..चिराग कोई भी जले बुझाना है, हुनर हवा ने ये जाने कहां से सीखा है, गाजियाबाद के लोकप्रिय कवि कुंअर बेचैन ने..अपने आंचल को भिगोती ही चली जाती है, जिंदगी रोई तो रोई ही चली जाती है.., जैसलमेर के सुपरिचित राजस्थानी कवि आईदानसिंह भाटी ने. नदी सूखगी समदर खारौ, शब्द बीमारू रूंख उदास, कवि गमादी अटपटबाणी, कांई हुवैला कुण जांणै? प्रस्तुत कर बेशुमार दाद पाई थी। वहीं जयपुर के अशोक चारण ने व्यवस्था पर चोट करते हुए..गुजरात में बापू के ख्वाब सारे ध्वस्त हुए, जम्मू कश्मीर भी फिर जार-जार हो गए.. ओज की गेय कविता सुना कर हॉल को गुुंजायमान कर दिया था।
खूब दाद मिली थी
बाल कवि बैरागी की सरपरस्ती में हुए उस कवि सम्मेलन में रावतभाटा के कवि हंसराज चौधरी ने अंगुली जो उठी तो अंगुली तोड़ देंगे वो, नजर उठी कोई तो अंाखें फोड़ देंगे वो.. से तीखे तेवर बताए तो लखनऊ की सुफलता त्रिपाठी को. सदा जो लोरियां गा कर हमें लोरी सुनाते हैं,कभी खुद भूखे रहते हैं मगर हमको सुलाते हैं.खूबसूरत रचना पर श्रोताओं की खूब दाद मिली थी। जबकि कोटा के राजस्थानी कवि मुकुट मणिराज ने..बिखरया केशां में यो सुन्दर बदन इयां दरसावै, काली घटा बीच मंदिर को कळश जियां दमकावै, कोटा के ही राजस्थानी कवि दुर्गादानसिंह गौड़ ने..थन्नै देख-देख म्हूं यूं जीज्यो, जाणै चांद चलू मैं पील्यो..पेश कर राजस्थानी संस्कृति की सौंधी महक बिखेरी थी।
बाल कवि बैरागी की सरपरस्ती में हुए उस कवि सम्मेलन में रावतभाटा के कवि हंसराज चौधरी ने अंगुली जो उठी तो अंगुली तोड़ देंगे वो, नजर उठी कोई तो अंाखें फोड़ देंगे वो.. से तीखे तेवर बताए तो लखनऊ की सुफलता त्रिपाठी को. सदा जो लोरियां गा कर हमें लोरी सुनाते हैं,कभी खुद भूखे रहते हैं मगर हमको सुलाते हैं.खूबसूरत रचना पर श्रोताओं की खूब दाद मिली थी। जबकि कोटा के राजस्थानी कवि मुकुट मणिराज ने..बिखरया केशां में यो सुन्दर बदन इयां दरसावै, काली घटा बीच मंदिर को कळश जियां दमकावै, कोटा के ही राजस्थानी कवि दुर्गादानसिंह गौड़ ने..थन्नै देख-देख म्हूं यूं जीज्यो, जाणै चांद चलू मैं पील्यो..पेश कर राजस्थानी संस्कृति की सौंधी महक बिखेरी थी।
मैं तो उसकी एक नजर का तालिब था
बाल कवि बैरागी के सान्निध्य में हुए उस कवि सम्मेलन में बुजुर्ग शाइर एडी राही ने..मैं तो उसकी एक नजर का तालिब था, उसने सारा प्यार मेरे घर फेंक दिया..व गीतकार दिनेश सिंदल ने..आपने पत्थर उछाले थे कभी मेरी तरफ, सारे पत्थर दोस्तो वो घर बनाने में लगे.. पेश कर सुधि श्रोताओं के दिल के तार झंकृत कर दिए थे। वहीं मीठेश निर्मोही ने दंगा और दादी मां, बूढ़े संस्कार, रंग-सुगंध, व दीवार शीर्षक से कविताएं सुनाईं तो सूर्यनगरी के सुशील पुरोहित ने.. तुम पर उठती लहरें कितनी मृद़ुल हैं, लहरंे समुंदर क्या एेसी ही होंगी..,राकेश मूथा ने रेत के टीले पर मैं अकेला कहां, मीलों पसरी बालू के भीतर उमगता जल..प्रस्तुत कर अभिभूत किया था। तब जोधपुर के मुहम्मद अफजल जोधपुरी ने. काम कोई बेसबब भी कीजिये, वरना किस से मुस्कुराया जायेगा..,इश्राकुल इस्लाम माहिर ने.. सब जाम हुए खाली हर रात लगे गाली, खामोश समुंदर में तुम फिर चांद जगा जाओ..पेश कर फागुनी छटा बिखेरी थी। अकादमी के तत्कालीन अध्यक्ष अर्जुनदेव चारण ने मेहंदी व रंगोली प्रतियोगिता की विजेताओं को पुरस्कार प्रदान किए थे। वहीं हिन्दी के प्रख्यात कवि संचालन दिनेश सिंदल ने किया था।
बाल कवि बैरागी के सान्निध्य में हुए उस कवि सम्मेलन में बुजुर्ग शाइर एडी राही ने..मैं तो उसकी एक नजर का तालिब था, उसने सारा प्यार मेरे घर फेंक दिया..व गीतकार दिनेश सिंदल ने..आपने पत्थर उछाले थे कभी मेरी तरफ, सारे पत्थर दोस्तो वो घर बनाने में लगे.. पेश कर सुधि श्रोताओं के दिल के तार झंकृत कर दिए थे। वहीं मीठेश निर्मोही ने दंगा और दादी मां, बूढ़े संस्कार, रंग-सुगंध, व दीवार शीर्षक से कविताएं सुनाईं तो सूर्यनगरी के सुशील पुरोहित ने.. तुम पर उठती लहरें कितनी मृद़ुल हैं, लहरंे समुंदर क्या एेसी ही होंगी..,राकेश मूथा ने रेत के टीले पर मैं अकेला कहां, मीलों पसरी बालू के भीतर उमगता जल..प्रस्तुत कर अभिभूत किया था। तब जोधपुर के मुहम्मद अफजल जोधपुरी ने. काम कोई बेसबब भी कीजिये, वरना किस से मुस्कुराया जायेगा..,इश्राकुल इस्लाम माहिर ने.. सब जाम हुए खाली हर रात लगे गाली, खामोश समुंदर में तुम फिर चांद जगा जाओ..पेश कर फागुनी छटा बिखेरी थी। अकादमी के तत्कालीन अध्यक्ष अर्जुनदेव चारण ने मेहंदी व रंगोली प्रतियोगिता की विजेताओं को पुरस्कार प्रदान किए थे। वहीं हिन्दी के प्रख्यात कवि संचालन दिनेश सिंदल ने किया था।